भारत में राज्यों का पुनर्गठनः एक विहंगम दृष्टि

Authors

  • अन्जू '' पीएच.डी, षोधार्थी, राजनीति विज्ञान विभाग, दिल्ली विष्वविद्यालय

Keywords:

पुनर्गठन, पिछडे़पन, अप्रत्यक्ष

Abstract

भारत में राज्यों के पुनर्गठन की मांग कोई नवीन मांग नहीं है अपितु समय-समय पर इसकी मांग की जाती रही है। हाल ही में पिछडे़पन के आधार पर आंध्र प्रदेष से अलग होकर बने 29 वें भारतीय राज्य, तेलंगाना ने एक बार फिर राज्यों के पुनर्गठन के मुद्दे पर चिंतन करने पर विवष कर दिया है। गोरखालैंड, हरित प्रदेष, बुंदेलखंड, विर्दभ, कुर्ग आदि क्षेत्रों नेभी अपने-अपने मूल राज्यों से पृथक होने की मांग दोहरानी षुरु कर दी है।भिन्न आधारों भाषाई, नृजातीयता एंव पिछडे़पन पर राज्यों के पुनर्गठन के बावजूद निरंतर नई उठती मांगों ने गंभीर सवाल खड़े कर दिये हंै कि आखिकरकार भारत में राज्यों के पुनर्गठन का पैमाना क्या हो ? क्या राज्यों का पुनर्गठन क्षेत्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति है ? क्या वर्तमान में एक नये राज्य पुर्नगठन आयोग की आवष्कता है ?
भारतीय संविधान के भाग- 1, में अनुच्छेद 1,2 एंव 3 में संघ के स्वरुप तथा राज्यों के निर्माण के संबध में उल्लेख मिलता है।1 अनुच्छेद 1 में वर्णित है कि भारत ‘राज्यों का एक संघ’ है, जिसका अभिप्राय है कि यह विनाषी राज्यों की एक अविनाषी यूनियन है। अनुच्छेद 2 निर्धारित करता है कि संघ विधि द्वारा नये राज्यों का निर्माण कर सकता है। अंत में अनुच्छेद 3 में व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति, अप्रत्यक्ष रुप से केंद्र सरकार, किसी राज्य से उसका राज्यक्षेत्र अलग कर, दो या दो से अधिक राज्यों का अथवा राज्यों के भाग को मिलाकर नये राज्य का निर्माण कर सकता है। राज्य के क्षेत्र को बढ़ा या घटा सकता है, राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकता है तथा राज्य के नाम मे भी परिवर्तन कर सकता है।

References

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