गोविन्द मिश्र के ‘लाल पीली जमीन’ उपन्यास में परिवेशगत सामाजिक मूल्यों के विघटन का यथार्थ

Authors

  • छोटूराम रैगर षोधार्थी, हिन्दी विभाग मोहनलाल सुखाडि़या विष्वविद्यालय,उदयपुर ; राज. )

Keywords:

उखड़ने, यंत्राणामय, प्र्रस्फुटन।

Abstract

‘लाल पीली जमीन’ मेें पैदा हुआ प्रायः हर व्यक्ति उखड़ने के लिए, गिरने के पहले जीवन के रूप में खड़खड़ाहट करने की विवशता के लिए ही पैदा हुआ है। असहाय, यंत्राणामय, करुण कराहें समस्त उपन्यास में व्याप्त हैं-शक्ति और अत्याचार करने की सामथ्र्य को बोध देने वाले व्यक्ति भी कहीं भीतर में अवश पीड़ा के ही प्र्रस्फुटन हैं। व्यक्ति और व्यक्ति के संबंधों में यह मिट्टी बजती रहती है-फिर ये संबंध पति-पत्नी के हों, पुत्र-पिता,माता-पुत्र,मित्र-मित्र या शत्रुता के हों।

References

संपा. चन्द्रकान्त बांदिवडेकर- गोविन्द मिश्र: सृजन के आयाम,वाणी प्रकाशन,नई दिल्ली, संस्करण, 2007, पृ. 86

गोविन्द मिश्र- लाल पीली जमीन, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2003, पृ. 10

गोविन्द मिश्र- लाल पीली जमीन, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2003, पृ. 60

गोविन्द मिश्र- लाल पीली जमीन, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2003, पृ. 65

संपा. चन्द्रकान्त बांदिवडेकर- गोविन्द मिश्र: सृजन के आयाम,वाणी प्रकाशन,नई दिल्ली, संस्करण, 2007, पृ. 89

वही पृ. 89

गोविन्द मिश्र- लाल पीली जमीन, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2003, पृ. 129

वही पृ. 294

वही पृ. 282

वही पृ. 317

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Published

2015-07-31

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Articles