दुष्यन्त कुमार की ग़ज़्ालों का प्रतिपाद्य, षिल्प और षैली

Authors

  • डाॅ. दीनदयाल दिल्लीवार अतिथि व्याख्याता, हिन्दी ष्षासकीय षहीद कौषल यादव महाविद्यालय, गुण्डरदेही जिला- बालोद ( छत्तीसगढ़ )

Keywords:

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Abstract

आज ग़ज़ल बहुत लोकप्रिय है। ग़ज़ल में दो पंक्तियों में बात कह देने की असाधरण क्षमता है। अथवा अनुभूति की तीव्रता के साथ अभिव्यक्ति में ग़ज़ल सक्षम है। हिन्दी साहित्य में आज यह प्रमुख विधा का रुप ले चुकी है। हिन्दी में ग़ज़ल उर्दू से आई है, अतः उस पर उर्दू का प्रभाव स्वाभाविक है। फिर भी अब हिन्दी ग़ज़ल अपनी अलग जमीन तैयार कर रही है। और यह कहने में मुझे जरा भी संकोच नहीं है कि अब हिन्दी ग़ज़ल भी अपने मूल विषय क्षेत्र से निकल जनजीवन के दुःख-दर्द को बयांॅ करने लगी है।

References

ऽ हिन्दी ग़ज़ल की नयी दिषाएॅं, संपादक, सरदार मुज़ावर, पृष्ठ- 35

ऽ हिन्दी ग़ज़ल की नयी दिषाएॅं, संपादक, सरदार मुज़ावर, पृष्ठ- 58

ऽ साए में धूप, दुष्यन्त कुमार, पृष्ठ- 13

पृष्ठ तीन-

ऽ साए में धूप, दुष्यन्त कुमार, पृष्ठ- 13

ऽ साए में धूप, दुष्यन्त कुमार, पृष्ठ- 30

ऽ साए में धूप, दुष्यन्त कुमार, पृष्ठ- 15

क्रमषः....पृष्ठ....6....पर.....

ऽ साए में धूप, दुष्यन्त कुमार, पृष्ठ- 15

ऽ साए में धूप, दुष्यन्त कुमार, पृष्ठ- 13

ऽ साए में धूप, दुष्यन्त कुमार, पृष्ठ- 15

ऽ साए में धूप, दुष्यन्त कुमार, पृष्ठ- 43

पृष्ठ चार -

ऽ साए में धूप, दुष्यन्त कुमार, पृष्ठ- 21

ऽ साए में धूप, दुष्यन्त कुमार, पृष्ठ- 40

ऽ साए में धूप, दुष्यन्त कुमार, पृष्ठ- 46

पृष्ठ पाॅंच -

ऽ साए में धूप, दुष्यन्त कुमार, पृष्ठ- 40

ऽ साए में धूप, दुष्यन्त कुमार, पृष्ठ- 55

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Published

2015-07-31

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Articles