गीता यानि गति

Authors

  • कु. सरला साहू एम.ए. गोल्ड मेडलिस्ट, एम.फिल रानीदुर्गावती विष्वविद्यालय,जबलपुर (म.प्र.)

Keywords:

सतत्, दिषा बोधक, संजीवनी, विषुद्ध ज्ञान, अर्कमण्यता, संहिता, आह्वान।

Abstract

गीता भारतीय परम्परा में प्रस्थानयंत्री का अंग है। यह कर्म और पुरूषार्थ के साथ विवेक सम्मत निर्णयात्मिका बुद्धि की पक्षधर है। गीता अन्याय और अत्याचार अधर्म और असत्य के विरूद्ध संघर्ष की प्रेरणा देती है। गीता किसी मत, पंथ के संाचे में बंधा नीति ग्रन्थ नहीं, अपितु मानव जीवन के साथ सतत् चलने वाली जीवन्त दिषा वोधक संजीवनी है।
गीता ऐसा ही विषुद्ध ज्ञान है । खास बात यह है कि, इस ज्ञान-सिन्धु में कुछ भी ऐसा नहीं है कि इसे सिर्फ हिन्दुओं या भारतीयों के लिए रखा गया या जाए । अकर्मण्यता के खोल तोड़कर जिन्दगी की लड़ाई में पूरी शक्ति से जूझना आज किसकी आवश्यकता नहीं ?
हर वर्ग का व्यक्ति सोचता है, काम करूंगा तो जीवन चलेगा। मिल मालिक सोचता है, मषीन चलेगी तो मुनाफा होगा, विद्यार्थी सोचता है पढ़ाई करेंगे तो नौकरी मिलेगी इत्यादि,क्या कामगार, व्यापारी या विद्यार्थी को धर्म के आधार पर बांटा जा सकता है? जिन्दगी के सूत्र, इसके सबक सांझे होते हैं। सबके लिए समान है। गीता बैठे-ढाले का भजन नहीं समझना चाहिए । रामायण की तरह पुरूषोत्तम, मर्यादा आदर्ष जीवन, वाइविल या कुरान की तरह जीवन की आचार संहिता का आख्यान भी गीता नहीं है। गीता इन सबसे अलग है। किसी अन्य श्रृद्धा ग्रन्थ से इतर व्यवहारिक जीवन का सार गीता में है। जीवन के समर में कूद पड़ने की प्रेरणा है। चुनौतियों का सामने से, डटकर मुकाबला करने का आहवान है । गीता का कर्म सिद्धान्त हर मनुष्य के जीवन को गति देता है। यह बात सिर्फ अर्जुन या हिन्दु की ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण देष के मानवता की है।

References

गीता-प्रबोधनी- ग्रीता प्रेस गोरखपुर गोविन्द भवन कार्यालय अध्याय 2 का पृष्ठ 40-41 व 67 ग

महात्मा गांधी = एक पत्र 31.10.1932

बालगंगाधर तिलक-सुविचार नेट द्वारा

आदि शंकराचार जी- सुविचार नेट द्वारा

श्री अरविन्द- सुविचार नेट द्वारा

अमरीका के डेट्रोईट में - गीता की प्रथम दो अध्याय पर दिये गये प्रवचन नेट द्वारा

महादेव भाई देसाई के ग्रंथ से गांधी जी के अनुसार गीता से ।

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Published

2015-06-30

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Articles