संस्कारधानी की साहित्यिक परंपरा: एक अवलोकन

Authors

  • डाॅ. रानू राठौर सहायक प्राध्यापक, हिन्दी विभाग माता गुजरी महिला महाविद्यालय, जबलपुर (म.प्र.)

Keywords:

.

Abstract

कोई भी परंपरा जड़हीन एवं आकाशी नहीं होती, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में उसकी पूर्व पीठिका पृष्ठभूमि होती है । जबलपुर की साहित्यिक परपंरा की पड़ताल तब तक संभव नहीं जब तक कि त्रिपुरी और गढ़ा के इतिहास के पृष्ठ न बाँचें । वास्तव में त्रिपूरी और गढ़ा के इतिहास के बिना न तो जबलपुर के इतिहास की कल्पना की जा सकती है और न परम्परा की पड़ताल ।
प्रश्न उठता है कि साहित्यिक परम्परा, वह भी हिन्दी साहित्य की परम्परा के सूत्र क्या संस्कृत, पालि, प्राकृत और अपभं्रश में खोजना युक्ति संगत है ? प्रयत्न के पूर्व ‘प्राप्ति’ की घोषणा कैसे की जा सकती है । जबलपुर की साहित्यिक परम्परा का अवगाहन कल्चुरी काल के पहले कवि माउराज से माना जाता है । साहित्यिक परम्परा ने कल्चुरीकाल, गौड़काल, भारतेन्दु-युग, द्विवेदी-युग और आधुनिक युग को आत्मसात किया है । शोध-पत्र कल्चुरीकाल से लेकर आधुनिककालीन साहित्यिक परम्पराओं को व्याख्यायित करता है ।

References

सरस्वती - सितम्बर 1806

आधुनिक हिन्दी काव्य- रूप और संरचना, निर्मला जैन

जबलपुर की काव्यधारा, पं. हरिकृष्ण त्रिपाठी.

छायावाद युग - डाॅ. शंभूनाथ सिंह

Downloads

Published

2015-07-31

Issue

Section

Articles