प्रिंट मीडिया का वैचारिक पक्ष

Authors

  • डाॅ0 अनीता देवी सहायक प्रोफेसर (हिन्दी) स्वामी श्रद्धानन्द महाविद्यालय (दिल्ली विष्वविद्यालय) अलीपुर दिल्ली-40

Keywords:

अनुसन्धान, परम्परावादी एवं मान्यताओं

Abstract

कोई भी काल या समय हो समाज में नये-नये अनुसन्धान एवं प्रयोग होते रहते हैं। इन्ही अनुसन्धानों एवं प्रयोगों का परिणाम है कि मनुष्य अपनी आदिम अवस्था से विकास करात हुआ आज के आधुनिक युग में आ पहुँचा है। इसी से समाज में परिवर्तन आत है और उसका विकास होता है, क्योंकि यह परिवर्तन स्थापित मूल्यांे, आदर्षाें एवं मान्यताओं पर प्रष्नचिन्ह लगाकर उनको उखाड़ फेंकता है। जब यह परिवर्तन हो रहा होता है तो समाज की अजीब-सी स्थिति हो जाती है। हर क्षेत्र में उथल-पुथल मच जाती है। लोग अपने-आपको असुरक्षित महसूूस करने लगते हैं। समाज दो वर्गाें में बँट जाता है । एक ऐसा वर्ग जो इन परिवर्तनों के प्रति सकारात्मक दृष्टि रखता है और दूसरा ऐसा वर्ग जो इन परिवर्तनों के प्रति नकारात्मक दृष्टि रखता है । जो लोग परम्परावादी तथा निराषावादी होते हैं, वे इन परिवर्तनों से नाखुष होते हैं तथा आषावादी होते हैं वे इन परिवर्तनों को समाज के हित में मानते हैं। चाहे जो भी हो परिवर्तन या बदलाव तो सृष्टि को नियम है, वह तो होकर ही रहेगा।

References

आधुनिक पत्रकारिता: आलोचनात्मक विश्लेषण - धर्मेन्द्र सिंह।

इलेक्ट्रनिक मीडिया: बदलते आयाम - डाॅ0 स्मिता मिश्रा, डाॅ0 अमरनाथ ‘अमर‘।

जन सम्पर्क -जयश्री एन. जेठवानी

भारतीय पत्रकारिता का इतिहास - जे. नटराजन

भूमण्डलीय जनमाध्यम - एडवर्ड एस. हरमन राॅबर्ट डब्ल्यू मैकचेस्नी।

हिन्दी पत्रकारिता: दूरदर्शन और टेली फिल्में- सविता चढड़ा

नवभारत टाइम्स (समाचार -पत्र)

दैनिक जागरण (समाचार-पत्र)

हंस (पत्रिका) मार्च 2013

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Published

2014-03-31

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Section

Articles