समकालीन कविता की पृष्ठभूमि, प्रवृŸिायाॅं एवं आन्दोलन

Authors

  • डाॅ. दीनदयाल दिल्लीवार अतिथि व्याख्याता, हिन्दी षासकीय षहीद कौषल यादव महाविद्यालय, गुण्डरदेही जिला- बालोद ( छत्तीसगढ़ )

Keywords:

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Abstract

समकालीन कविता अपने समय की पहचान है। यह अपने समय के अन्तर्विरोधों की कविता है। यह कल्पना के वायवीय - आवर्तों में चक्कर नहीं काटती, उसमें आज के संघर्ष करते आदमी की सच्ची तस्वीर है। समकालीन कविता में जो रहा है उसका सीधा खुलासा है। इसे पढ़कर वर्तमान काल का बोध हो सकता है क्योकि उसमें जीते, संघर्ष करते, लड़ते, बौखलाते, तड़पते - गरजते तथा ठोकर खाकर सोचते वास्तविक आदमी का परिदृष्य है। आज की कविता में काल, अपने गयात्मक रुप में हैं ठहरे हुए क्षण अथवा क्षणांष के रुप में नहीं। यह ‘कालक्षण’ नहीं कालप्रवाह की आघात और विस्फोट कविता है। समकालीन कविता में दैनिक आवष्यकताओं के ज्ञान की शक्ति है। प्राथमिक आवष्यकताओं को पहचान कर लड़ने का संकल्प है। नयी कविता के पष्चात् 1959 - 60 में हिन्दी कविता की मानसिकता में, जो गुणात्मक और वैचारिक परिवर्तन आए उसका विवेचन करना मेरे इस षोध - लेख का प्रमुख उद्देष्य है।

References

समकालीन कविता की भूमिका, पृष्ठ 8

समकालीनता और काल-बोध, पृष्ठ 25

नया हिन्दी काव्य, षिवकुमार मिश्र, पृष्ठ 35

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मुक्तिबोध के काव्य का पुर्नमूल्यांकन, डाॅ. सम्पत ठाकुर, पृष्ठ 22

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दस्तावेज, संपादक विष्वनाथ प्रसाद तिवारी, पृष्ठ 110

वही, पृष्ठ 114.

वही, पृष्ठ 134.

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Published

2015-08-31

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Articles