सामाजिक उत्पीड़न और धर्म परिवर्Ÿान

Authors

  • डाॅ0 जगन्नाथ सिंह (पूर्व षोध-छात्र) विषय-समाजषास्त्र ग्राम-लालगंज वीर कुॅवर सिंह वि0 वि0 आरा (बिहार)

Keywords:

उत्पीड़न, छुआछुत, कुव्यवस्था।

Abstract

सामाजिक उत्पीड़न और धर्म परिवर्Ÿान हिन्दू समाज के जन्मजात गुण हैं। मेरा विश्वास है कि छुआछुत और जाति-भेद, वर्ण व्यवस्था हिन्दू समाज के प्राण है। मौर्य साम्राज्य के पतन के उपरान्त वर्णाश्रम धर्म के परम पोशक शुंग और गुप्त वंशीय राजाओं ने बुद्ध के समतावादी दृष्टिकोण के विरूद्ध असमता की घोतक वैदिक संस्कृति को विस्मृति के गर्भ से बाहर निकालकर हिन्दूमत घृणा, विषमता, शत्रुता और मानव के साथ पशुता पर आधारित व्यवहार पुनः प्रतिष्ठित कर दिया। सवर्ण के हिन्दूओं द्वारा शादी-विवाह मंे घोड़ी पर बिठाने पर विरोध और मार-पीट किया जाता था। निम्न जातियों को जनेऊ पहनने पर सवर्ण के हिन्दूओं ने विरोध तथा मार-पीट करता था। निम्न जातियांे को जूते-जुराब पहन कर गाँव मंे चलने पर सवर्ण के हिन्दुओं द्वारा विरोध और मार-पीट किया जाता था। साथ ही साथ सवर्ण के हिन्दूओं को पलगी न करने पर मार-पीट किया जाता था। टट्टी-पेशाब के लिए लोटा इस्तेमाल करने पर यातना दिए जाते थे। सवर्ण के लोग निम्न वर्ग के घरों में शुभ अवसर पर घी की पुड़ी परोसे जाने पर भी पिटाई किए जाते थे। गाँव मंे प्रवेश से रोकना सवर्ण के हिन्दूओं का आचरण था। एक आदमी को दूसरे इंसान से किस तरह का बर्ताव करना चाहिए, इस बात की शिक्षा हिन्दू धर्म में नहीं है। जिस किसी धर्म मंेे एक विशेष वर्ग शिक्षा प्राप्त करे, दूसरे विशेष वर्ग को हथियार चलाने का अधिकार प्राप्त हो, तीसरे किसी वर्ग विशेष को व्यापार करने का अधिकार मिला हो और चैथा वर्ग विशेष केवल शेष तीनों वर्गों की सेवा चाकरी का पात्र हो। इस तरह की कुव्यवस्था हो वह धर्म मुझे कदापि स्वीकार नहीं है।

References

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