राष्ट्रीय चेतना के सचेतक: पं0 माखनलाल चतुर्वेदी

Authors

  • डाॅ0 नीलम सैनी

Keywords:

संस्कार, क्रांतिकारी, तत्कालीन

Abstract

भारत के स्वतंत्रता संग्राम को हम दो व्यक्तियों - लोकमान्य तिलक और महात्मा गांधी -- के पीछे बांध सकते है ं सन् 1920 के पहले तिलक युग और उसके पश्चात् गांधी युग माना जा सकता है । इन दोनो व्यक्तियों के आसपास ही देष की राजनीति केन्द्रित रही और इनसे साहित्य ने भी पर्याप्त प्रेरणा ली । जबलपुर में माखनलाल चतुर्वेदी जी को स्वतंत्र वातावरण मिला । यहाँ उनकी प्रतिभा अभिव्यक्ति का आकार पाकर खिल उठी कुछ ऐसा लगा अभी कुुछ समय पूर्व जो किषोर भक्ति गीत लिख रहा था । नर्मदा नदी के तट पर जैसे वह बसन्त की अवगामी कर रहा हो । यही उन्हे देष और काल को समझने की स्थिति का आभास हुआ । जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार किया । यहाँ पर उन्होने विख्यात क्रांतिकारी सखाराम गणेष देउस्कर से 13 जनवरी 1906 को क्रांति की दीक्षा ली । जहाँ उन्हे एक पिस्तौल, गीता और आनन्द मठ भेंट स्वरूप प्राप्त हुई । जहाँ से उन्होने गीता का अध्ययन आरंभ किया । मिडिल स्कूल की पढ़ाई अपनी जगह थी लेकिन उस युग की चेतना अपनी तरह से अपने संस्कार अंकित करने लगी थी । जिसके कारण माखनलाल को एक नया व्यक्तित्व प्राप्त हुआ । 1891 में स्वामी विवेकानंद का षिकागो सम्मेलन का मंत्र सुनकर उन्हे लगा की राष्ट्र के लिये उन्हे कुछ करना आवष्यक है

References

दिवंगत हिन्दी सेवी

क्षेमचंद सुमन

माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली -भाग 1

श्रीकांत जोषी

स्मृति लेखा

सच्चिदानन्द हीरानंद वात्सायन अज्ञेय

माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली -भाग 1

श्रीकांत जोषी

माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली -भाग 1

श्रीकांत जोषी

माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली -भाग 1

श्रीकांत जोषी

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Published

2014-03-31

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Articles