भारत में गांधी विचार दर्शन का प्रासंगिकता

Authors

  • Dr Neelam सैनी

Keywords:

gjms

Abstract

मोहनदास करमंचद गांधी जिन्हें हम सम्मानपूर्वक महात्मा गांधी के नाम से स्मरण करते हैं हमारे इतिहास के ऐसे युग में पैदा हुये थे जब समाज को उपर्युक्त दिशा निर्देशों की आवश्यकता थी । वे इतिहास में संघर्षशील समाज सुधारक, समाजसेवी, विचारक तथा मुक्तिदाता के रूप में पतिष्ठित हुये । वे धार्मिक, मानवतावादी तथा व्यवहारिक आदर्शवादी थे । उन्होंने जीवन को उसके समस्त व्यापक रूपों सहित स्वीकार किया । उन्होंने मानवीय मामलों के अवलोकनकर्ता के रूप में ऐसी समस्याओं पर जो तत्कालीन समाज में विद्यमान थी प्रकाश डाला अतः उनके विचार शैक्षणिक रूप से पूर्णतः समायोजित नहीं थे एवं न ही वे असंगतता से मुक्त ही थे । उन्होंने अपनी दार्शनिकता में प्राचीन पूर्वजों और दर्शन को प्रस्तुत किया । हमारे पूर्वज तथा दर्शन हमारी प्रेरणा तथा विचारों के शासवत स्त्रोत हैं हमारी अपने पूर्वजों के प्रति अज्ञानता का पाश्चात्य राजनीतिक विचारों के प्रति आसक्ति को गांधी जी अपने लेखों के माध्यम से दूर करने का प्रयास किया । हमारे पूर्वजों ने अपनी स्थिति अनुसार विचारों की रचना की थी । पश्चिमीकरण ने हमारे पूर्वजों के विचारों के तर्कसंगत तथा सकारात्मक अध्ययन को असंभव बना दिया था । गांधी जी अपने लेखों के माध्यम से दूर करने का प्रयास किया । हमारे पूर्वजों ने अपनी स्थिति अनुसार विचारों की रचना की थी । पश्चिमीकरण ने हमारे पूर्वजों के विचारों के तर्कसंगत तथा सकारात्मक अध्ययन को असंभव बना दिया था । गांधी जी का दृढ़ विश्वास था कि प्राचीन विचार आज भी हमारी बहुत सी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं उन्होंने समाज में वर्ण, कर्म, सत्य, अहिंसा, अपरिगृह समभाव, सर्वोदय तथा धर्म के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया । गांधी जी ने इन्हें सकारात्म तथा सार्थक रूप में प्रयुक्त किया न कि उस रूप में जिस रूप में वे समाज में प्रचलित थे ।

References

संदर्भ:-

‘‘गाॅधी, टैगोर, नेहरू की विचारधारायें ’’ ।

लेखक - प्रो. जे एल. काचक

‘‘भारत में राष्ट्रीय आंदोलन ’’

लेखक - रश्मि बाजपेयी

‘‘महात्मा गाॅधी’’

(म.प्र.पाठ्य पुस्तक निगम)

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Published

2014-01-31