’’भाषा विस्तार के आधार’’

Authors

  • डाॅ. प्रियम्वद मिश्र (हिन्दी विभाग) रा.दु.वि.वि., जबलपुर

Keywords:

अभूतपूर्व, अप्रभंश, प्राकृत, ।

Abstract

हिंदी भाषा के विकास में हिंदी साहित्य का अभूतपूर्व योगदान रहा है। हिंदी भाषा के विकास की हमें दो सारणियाॅ दिखाई देती है। एक हिंदी के गद्य साहित्य के विकास की और दूसरी है हिंदी के बोलचाल के विकास की। अप्रभंश भाषा की समाप्ति 10वीं शताब्दी के अंत तक हो जाती है और 11वीं शताब्दी के प्रारंभ से हिंदी भाषा के विकास की कहानी आरंभ होती है। 11वीं शती से अपनी यात्रा आरंभ कर आज हिंदी हमारे सामने जिस रूप में आ खड़ी हुई है उससे तो हम लोग परिचित है। प्रारंभ में हिंदी का वह रूप जो अपभ्रंश से विकसित होकर सामने आया है वह प्राकृत, अपभ्रंश की शब्दावली से ओतप्रोत था। धीरे-धीरे हिंदी के इस रूप से विकास हुआ और आगे चलकर अपनी बोलियाँ विकसित हुई। स्वतंत्रता के बाद हिंदी भाषा को संविधान में राजभाषा का दर्जा मिला तथा वह आज विभिन्न प्रयोजनों को सशक्त माध्यम ही नहीं है, बल्कि सारे देश में उसका अस्तित्व संपर्क भाषा के रूप में मान्य हुआ है।

References

आ. रामचन्द्र शुक्ल - हिंदी साहित्य का इतिहास

आ. नगेन्द्र - हिंदी साहित्य का इतिहास

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Published

2015-11-30