‘‘वैदिक वाड्.मय के अनुसार आदर्श जीवन-शैली ’’

Authors

  • डाॅ. राजन हाॅडा एस.एस.एम. काॅलेज दीनानगर ।

Keywords:

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Abstract

भारतीय संस्कृति और साधना का मूल हैं वेद ! इनमें प्राचीन ऋषियों के वे ज्ञान -प्रज्ञान प्रतिफलित हैं जिनका उन्होंने गहन तपस्या के पश्चात् अपने अन्तस्तल में साक्षात्कार किया। 1 सम्भवतः इसलिये प्रबल मेधा सम्पन्न व्यास मुनि ने वेदों की प्रत्यक्ष और अनुमान कहा है। 2 शंकराचार्य ने जिसका समर्थन करते हुए लिखा है ‘‘ प्रत्यक्षं हि श्रुतिः प्रामाण्यं प्रति अनपेक्षत्वात्’’। वेदों का स्वतः प्रामाण्यं सिद्ध है ! वेद सत्यज्ञान हैं, सत्य - विद्याओं का भण्डार हैं। इस विद्या की निधि का कोई अन्त नहीं।, वह कभी न जीर्ण होने वाला, सदा जीवन में प्रेरणा और ज्ञान देने वाला शाश्वत स्रोत है! 3 इस शाश्वत ज्ञान का दर्शन करने वाले ऋषियों को वेद में विप्र, वेधस्, कवि, ऋषि, मनीषी और मुनि इन विभिन्न नामों से अभिहित किया गया है।
वेदों में लोक जीवन का आदर्श रूप दिखाई देता है’ वेदों के अनुसार यह आर्दश रूप मानव के आचारवान् होने के बिना सम्भव नहीं है! जब तक मानव का आचरण सही नहीं होता तब तक उसे आर्दशवान् नही कहा जा सकता है, एवं सभ्य समाज की कल्पना नहीं का जा सकती है।
1. ऋषि दर्शनात् ; (निरूक्त)
2. वेदान्त: दर्शन , 1.3.28
3. अथर्व॰ ((10.8.32))

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Published

2015-12-31