‘‘वैदिक ऋाष का यज्ञः सृष्टि -विकास की प्रक्रिया एवं यज्ञ विज्ञान चिन्तन’’

Authors

  • डाॅ. राजन हाॅडा एस.एस.एम. काॅलेज दीनानगर ।

Keywords:

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Abstract

चारों वेदों में यजुर्वेद का स्थान अन्यतम है। भारतीय परम्परा यजुर्वेद का प्रकटन सृष्टि के आदि मंे ‘वायु ऋषि’ पर मानती है। यजुर्वेद के विषय में एक सामान्य दृष्टि यह है कि यह विज्ञान एवं न्यूनाधिक राजनैतिक ,सामाजिक और पारिवारिक जीवन के लिए ही कुछ सुझाव देता है, दार्शनिक चिन्तन के प्रति इसके मन्त्र उदासीन हैं। इसके इकत्तीसवें अध्याय में यदि दार्शनिक - चिन्तन को अभिव्यक्ति मिली भी तो उसके लिए यजुर्वेद, ऋग्वेद का ऋणी है,  क्योंकि यह अध्याय ऋग्वेद का ‘पुरूष -सूक्त’ ही है!

References

.यज्ञ एवं वायु प्रदूषण , लेखक डा॰ देवराज खन्ना, ‘आर्यमर्यादा’ 23 मई 2004 ।।

इयं ते यज्ञिया तनू: । यजु॰ 4.13

पुरूषो वे यज्ञः श॰ ब्रा॰ 1.3.2.1

मा यज्ञं हि सिष्टं मा यज्ञपतिं । यजु॰ 12.60

प´च दिशो देवीयर्जमवन्तु देवीरमामति र्दुमतिं बाधमाना: ।रसस्योष यज्ञपतिमा भजनती रायस्पोषे अधियज्ञो अस्थात् यजु॰ 17.54 -

तेन वयं गमेम ब्रध्नस्य विष्टपं स्वो अधि नाकसुततम् ।। यजु॰ 18.51

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Published

2015-12-31