वृद्व विमर्श

Authors

  • गुड्डू कुमार सिंह एम. ए.(हिन्दी),नेट(यू0जी0सी)

Keywords:

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Abstract

भारतीय परंपरा में मातृ देवो भव् और पितृ देवो भव् की अवधारणा विकसित की गई है। यजुर्वेद संतान को अपने माता-पिता की सेवा और उनका सम्मान करने की शिक्षा देता है- यदापि पोष मातरं पुत्र प्रभुदितो धयान्। इतदगे अनृणो भवाम्यहतौ पितरौ ममां॥ अर्थात जिन माता-पिता ने अपने अथक प्रयत्नों से पाल पोसकर मुझे बड़ा किया है अब मेरे बड़े होने पर जब वे अशक्त हो गये हैं तो वे जनक-जननी किसी प्रकार से भी पीडित न हों इस हेतु मैं उसी की सेवा सत्कार से उन्हें संतुष्ट कर अपा आनृश्य (ऋण के भार से मुक्ति कर रहा हूँ।

References

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Published

2015-01-31