माक्र्स, गांधी एवम् अम्बेडकर और सामाजिक उद्धार:(Social Emanicipation) एक अवधारणात्मक विवेचन
Abstract
माक्र्स, गाँधी और अम्बेडकर, इन तीनों ही चिन्तकों की विचारधारा में एक प्रमुख समानता यह देखने को मिलती है कि तीनों ही सामाजिक उद्धार (ैवबपंस म्उंदबपचंजपवद) के प्रणेता हैं, लेकिन इनमें कुछ मौलिक भेद अवधारणात्मक रूप से देखे जा सकते है। यथाः (1.) माक्र्स की सामाजिक उद्धार की पद्धति मुख्य रूप से आर्थिक व्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन को केन्द्र में रख कर चलती है। गाँधी के चिन्तन का आधार उनका आध्यात्मवाद है, इसलिए उनके अनुसार सामाजिक उद्धार का आधार माक्र्स की भाँति केवल सामाजिक संरचना के परिवर्तन या रूपान्तरण से संभव नहीं है, क्यांेकि इन दोनों ही व्यवस्थाओं की इकाई व्यक्ति विषेष ही होता है इसलिए गाँधी का जोर व्यक्ति के आध्यात्मक, चारित्रिक परिवर्तन पर है। जिसे वे हृदय परिवर्तन के रूप में परिभाषित करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि व्यक्ति विषेष के हृदय परिवर्तन करने पर सम्बंधित सभी व्यवस्थाओं में सुधार एवम् उन्नयन स्वतः ही हो जाता है, इसलिए उन्होंने व्यक्ति के द्वारा अपनाये जाने वाले साध्य (डमंदे) की तुलना में साधन (म्दके) की पवित्रता पर अत्यधिक बल दिया और सत्य अहिंसा जैसे व्यक्ति मूलक सद्गुणों को आधार बनाया। इस प्रकार गाँधी की उन्नयन की प्रक्रिया दार्षनिक सुकरात की व्यष्टी-मूलक पद्धति के अनुरूप है जबकि माक्र्स और अम्बेडकर की प्रक्रिया दार्षनिक प्लेटो की समष्टी मूलक पद्धति के अनुरूप है।
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