मध्यप्रदेष के षिक्षकों की सेवा दषाएॅं

Authors

  • डा. आर. एस. मिश्रा विभागाध्यक्ष ए.के. एस विष्वविद्यालय सतना

Keywords:

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Abstract

स्वतंत्रता के पूर्व की स्थिति . भारतीय षिक्षा के इतिहास बौद्वकालीन युग से भी लगभग बारह वर्ष पुराना है, किन्तु षिक्षा का सुव्यवस्थित स्वरूप वैदिक काल से प्रारम्भ माना गया है। प्राचीन भारत में षिक्षा मनीषी इस तथ्य से पूरी तरह से अवगत थे कि षिक्षा व्यक्ति के सर्वांगीण विकास, समाज की चतुर्मुखी उन्नति और सभ्यता की बहुमुखी प्रगति की आधार-षिला है। अतः उन्होने षिक्षा की ऐसी प्रषंसनीय प्रणाली का विकास किया, जिससे न केवल हमारे यहाॅं की विशाल वैदिक साहित्य को सुरक्षित रखा जा सका, वरन् ज्ञान के विविध क्षेत्रों के मौलिक विचारों को भी जन्म दिया गया। प्राचीन भारत में षिक्षा को अत्याधिक महत्व दिया जाता था। उस समय यह माना गया कि षिक्षा व्यक्ति के वास्तविक शक्ति को सम्पन्न करती है, तथा वह हमारे स्वभाव को परिवर्तित कर हमें मानव बनाती है। प्राचीन भारतीय षिक्षा गुरूकुल प्रणाली पर आधारित थी, तथा हमारे षिक्षक गुरूकुल के ऋषि-मुनि ही हुआ करते थे। गुरूकुल प्रणाली, षिक्षा की पारिवारिक प्रणाली में विष्वास करने वाली थी तथा यहाॅं षिक्षक-छात्र के मध्य गुरू-षिष्य के संबंध पिता-पुत्र के संबंध से बढ़कर होता था। षिक्षक के पद पर अत्यन्त ज्ञानी ऋषि-मुनि जो मुख्य रूप से ब्राम्हण होते थे, का ही पूर्णतः आधिपत्य था। इन गुरूओं का समाज में बहुत अधिक सम्मान था। जिस क्षेत्र में ये गुरूकुल स्थापित थे वहाॅं के राजा स्वयं गुरूओं के सम्मान के लिए गुरूकुल में जाते थे। यदि ये गुरू किसी कार्य के लिए राज दरबार में आते थे तो उन्हे उस राज्य के राजा अत्याधिक सम्मान देते हुए उन्हे आने समकक्ष उचित आदान प्रदान करते थे।

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Published

2016-04-30

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Articles