विदेषी आंक्राता महमूद गजनवी व भारतीय षासकांे का प्रतिरोध
Keywords:
चंदेल, राजवंष।Abstract
प्राचीनकाल से ही भारत विदेषी आक्रमणो का सामना दृढतापूर्वक करता आया है। युनानी, सिकन्दर, यवन, षक, हूण इत्यादि आक्रमणकारियों को भारतीय षासकों द्वारा समय-समय पर प्रतिरोध किया जाता रहा है। इसी क्रम में पूर्व मध्यकाल में अरब आक्रमण भारत में हुए। जिस समय तुर्को ने भारत में आक्रमण किया भारत विभिन्न छोटे-छोटे राजपूत राजवंषो गुर्जर-प्रतिहार, गहडवाल, चैहान, पाल, सेन, हिन्दूषाही, उत्पल, चालुक्य, चंदेल, परमार इत्यादि में विभक्त था। इन भारतीय राजवंषो ने सामान्यतः अपने राज्य की सुरक्षा व स्वतंत्रता के लिए विदेषी आक्रमणकारियों से संघर्ष किया चूंकि भारत एक सम्रद्धषाली देष था। अतः गजनवी का भारत पर आक्रमण का उद्देष्य राजनैतिक न होकर आर्थिक था। वैसे तो अधिकांष भारतीय राजवंषो ने तुर्को के आक्रमण का सामना किया। परन्तु सर्वप्रथम भारतीय सीमा पर स्थित पंजाब के हिन्दुषाही राजवंष ने तुर्क आक्रमण को रोकने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।References
सचाऊ, सी एडवर्ड, अलबेरुनीज इंण्डिया, प्रथम खण्ड, रुपा प्रकाषन, दिल्ली, पृ 259
षर्मा, एल.पी.,दिल्ली सल्तनत, पृ.32, जैन एण्ड सन्स, आगरा, 1973
उतनी तबी, तारीख-ए-यामिनी, भाग-2
वही
वही
ब्रिग, जाॅन, ऐसे आनॅ द लाइफ एण्ड राइटिंग्स आॅफ फरिष्ता, ट्रानजेक्सन आॅफ द राॅयल ऐषियाटिक सोसायटी आॅफ ग्रेट ब्रिटेन एण्ड आयरलैण्ड1, पृ.11, लंदन
मेहता, जे. एल.-मध्यकालीन भारत का बृहत इतिहास, प्रथम खण्ड, पृ. 60 जवाहर प्रकाषन, दिल्ली 1997
वही, पृ. 62
उतबी, पृ. 26
फारिष्ता, पृ. 26
वर्मा, हरीषचन्द, मध्यकालीन भारत भाग-प्रथम, पृ.18, हिन्दी, माध्यम कार्यान्वयन निदेषालय, दिल्ली 1997।
कल्हण कृत राजतरंगणी, भाग तृतीय, पृ.12 सिंह, रघुनाथ (भाश्यकार), हिन्दी प्रचारक संस्थान वाराणसी, 1976।
वही, पृ.12
वही, पृ.12
श्रीवास्तव, आषिर्वादी लाल, भारत का इतिहास(1000 से 1707 ई. तक), पृ.12, षिवलाल अग्रवाल एण्ड कम्पनी, दिल्ली, 1981।
वर्मा, पृ. 14.
कल्हण कृत, पृ. 14
Downloads
Published
Issue
Section
License
Copyright Notice
Submission of an article implies that the work described has not been published previously (except in the form of an abstract or as part of a published lecture or academic thesis), that it is not under consideration for publication elsewhere, that its publication is approved by all authors and tacitly or explicitly by the responsible authorities where the work was carried out, and that, if accepted, will not be published elsewhere in the same form, in English or in any other language, without the written consent of the Publisher. The Editors reserve the right to edit or otherwise alter all contributions, but authors will receive proofs for approval before publication.
Copyrights for articles published in World Scholars journals are retained by the authors, with first publication rights granted to the journal. The journal/publisher is not responsible for subsequent uses of the work. It is the author's responsibility to bring an infringement action if so desired by the author.