समय और समाज के सन्दर्भ में गोदान की समीक्षा

Authors

  • डा0 आभा त्यागी प्राचार्या वैष्य कन्या महाविधालय समालखा (पानीपत) हरियाणा

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Abstract

मुॅंशी प्रेमचन्द उपन्यास साहित्य में सम्राट माने गये है गोदान उनकी अंतिम अपूर्ण रचना है जो भारतीय सहित्य की सर्वाश्रेष्ठ कृति है। गोदान अपने युग की ऐसी कथात्मक दस्तावेज है जिसमे मुख्य रूप से तत्कालीन भारतीय ग्राम जीवन और आनुशगिक रूप से नगरीय जीवन की पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और वैचारिक गतिविधियों के विष्वसनीयता दर्ज है।
गोदान का रचना काल सन् 1935-36 ईस्वी है यह वह समय है जब भारत की आजादी की लड़ाई पूरे उभार पर थी आजादी की यह चिन्गारी एक ओर कं्रातिकारी घटनाओं का रूप ले रही थी तो दूसरी ओर महात्मा गाॅंधी के नेतृत्व में अहिसात्मक पुर्नजागरण के रूप में ब्रहम समाज तथा आर्य समाज ने भारतीय जन मानस को गहरे रूप में प्रभावित किया था। आधुनिक ज्ञान, विज्ञान, शिक्षा, संस्कार, रीति-रिवाज, परिवार, व्यवहार, अर्थ, राजनीतिक और राष्ट्रीय स्वातन्त्रय कामना की दृष्टि से सम्पूर्ण भारतीय समाज, नई दिशा की ओर अग्रसर हो रहा था इतना होने पर भी गाॅवो में जमीदारी प्रथा का अंकुश पूर्ववत था किसान का शोषण कई स्तरो पर जारी था। मुखिया पंच महाजन, काटकुन, पटवारी, चैकीदार, थानेदार और राय साहब तक को अपने अपने हिस्से की रिशवत चाहिए थी। जातिगत ऊॅंच नीच की वर्चस्विता बरकरार थी किसान पर स्थायी कर्ज हमेशा रहता था जिन्दगी भले ही बीत जाए पर कर्ज नही बीतता था परिवर्तन की नई हवाओं की वजह से ढोंग के विरूद्ध गुस्सा भी फूटता सा दिखाई देता था। गाॅव की जिदगी एक ढ़र्रे के भीतर कुलबुलाती सी चली आ रही थी। शहरी जिन्दगी में षिक्षा के प्रसार और आवागमन की सुविधाओं के कारण तेजी से बदलाव आ रहा था। कल कारखाने और चीनी मिलो के खुल जाने से शहरों में रोजगार के अवसर बढ़ रहे थे। तदयुगीन बुद्धिजीवी वर्ग भी निष्क्रिय थे डाॅक्टर मेहता और मालती जो बुद्धिजीवी वर्ग के औपन्यासिक प्रतिनिधि है एक प्रकार से निष्क्रिय है देष का सुलगता हुआ विद्रोह क्या इसलिए असफल नही हो रहा है कि गाॅव और शहर की समस्याओं को समवाय रूप से नही देखा जा रहा है बुद्धिजीवी मध्यवर्ग की तटस्थ उदासीनता क्या उक्त असफलता के लिए उतरदायी नही प्रेमचंद अपनी ओर से कुछ नही कहना चाहते, डाॅक्टर मेहता और मालती को होरी के गाॅव में टूटी खाट पर बैठाकर समय की माॅग की और सकेत भर करते है, अन्यथा उन्होने तथ्यों का निर्भय विश्लेषण प्रस्तुत किया है।

References

प्रेमचन्द और गोदान-डाॅक्टर राज किषोर सिंह प्रकाषन केन्द्र लखनऊ

प्रेमचन्द और गोदान - नवमूल्यांकन - डाक्टर कृष्णदेव झारी भारतीय भवन चण्डीगढ़।

गोदान- एक अध्ययन-प्रेमनारायण टंडन

गोदान- (संस्करण 1960) पृष्ठ 85

गोदान -मूल्यांकन और मूल्यांकन - संपादक - इन्द्रनाथ मदान

गोदान- पुर्नमूल्यांकन - डाॅक्टर राजपाल शर्मा

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Published

2016-04-30

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