उत्तर शती के हिन्दी साहित्य पर बाजारीकरण का योगदान
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Abstract
बाजारी करण के दौर में धीरे धीरे मानवीय सम्बंध लुप्त हो रहे है। संग्रह के लालच में मनुष्य स्वाथी बन रहा है। जिससे सयुक्त परिवार टूट रहे है और संबंध बिखरे रहे है। सभी सबंधों के केन्द्र बाजार है उदा, कात्यानी- सात भाईयों के बीच एक बीन । धीरे धीरे बिखरने लगा आदमी दर्द के जगलों में भटक रहा आदमी रिस्ते नाते हो या तीस त्योहार बात पैसा की कर हर धडी।
2 बाजारीकरण के दौर में जों बलशाली महत्वपूर्ण आकर्षक सबंध उत्पाद निर्माताओं के लिए खरीदार और उपभोक्ता बाजार है। बाजार केवल खरीदने की ही नही बेचने की भी जगह है। उत्पाद को खरीदने को खरीदनें के लिए उपभोक्ता के मन में ललक पैदा करता है। क्रय विक्रय का महत्व पूर्ण केंद्र बाजार है। उत्पाद जैसा उपभोक्ता वैसा । जिस चीज की माॅग उपभोक्ता करता है वैसा ही उत्पाद साहित्य रचनाकार पाठकों को परोसता है। आकर्षक पोष्टरस बन लुभाने वाला विषय साहित्य उपभोक्ता को अपनी और आकर्षित करता है। ऐसा साहित्य बाजार में लोक प्रिय होता है। उदा, अब हवाये करेगीं रोशनी का फैसला जिन चिरागों में दम होगा वही जलेगा।
3, चारो और उपभोक्ता वादी संस्क्रति पनप रही है बाजार के रंगरंगिले आकर्षक मन लुभानेवाली शरीर और मन को मोहित करने वाली चीजो सें उपभोक्ता की मांग अधिक हो रही है । उसी साथ पैसा कमाने की तमन्ना में उपभोक्ता की सख्यां बढानें की होड में लगें उत्पाद कर्ता। पाठक भी ऐसी तन मन को लुभाने वाले साहित्य की माॅंग अधिक कर रहे है।ऐसे साहित्य की बिक्री अधिक होने के कारण बाजार का महत्व बढ रहा है। और इसी वजह से साहित्य में भाषा सम्पे्रशण का महत्व अधिक रहा है। बाजारीकरण्ण प्रभाव स्वरूप भाषा जिसे जहाॅं वहाॅं साहित्य में प्रयोग करने से पाठक पढने ंके लिए लालचित हो रहे है।
तब साहित्य में भाषा का प्रयोग सुंदर लुभावना कोमल मधूर श्सब्दों का प्रयोग करते हुए साहित्य को सुंदर बनाने की चेष्टा की जाती थी। परंतु उत्तर शती में व्यावहारिक भाषा में अति यथार्थ रूप् से शब्दों का प्रयोग बिनधास्त हो कर करते है जिसमें अश्लील शब्द हो सकते है गालियाॅं हो सकती है अथवा सर्व साधारण भाषा जिसे आम कोई भी छोटा मोटा पाठक पढ सकता है। साहित्य को समृध्द बनाने के लिए बोलचाल की भाषा का प्रयोग आवश्यक है। और यह जरूरी भी है कि अन्य भाषाओं को ग्रहण करनें सें भाषा भी समृध्द होगी । और कई बार उस प्रसंग और वातावरण की अभिव्यक्ति के लिए दूसरी भाषा के शब्दों का प्रयोग करना जरूरी होता है। कई बार एक ही भाषा का शब्द उस भाव को व्यक्त करने के लिए कमतर होते तब अलग शब्दों का प्रयोग करते है ऐसे अन्य भाषा की कहावते मुहावरे अथवा अग्रेजी की बहु प्रचलित शब्दो का प्रयोग जिससे साहित्य में सजीवता आ जाय। भाषा का प्रभाव जरूर पाठकों पर पडता है। उदा आज बाजार बंद है। जहाॅं धुआॅं उठता है आग भी वही लगती है। पाठकों के मन में निस्संदेह जिज्ञासा उत्पन्न होती है। आगे पढने की उत्सुकता दिखाता है। और इसी जिज्ञासा से पूरी कथा बिना बोर झटके में पढा लेता है। तभी तो उस साहित्य की माॅ।ग बढती हैं यही तो बाजारी करण है।
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