हिन्दी की दलित आत्मकथाएँ: संवेदना की अभिव्यक्ति
Keywords:
अभिव्यक्ति, समाज, अवसरAbstract
दलित आत्मकथाएँ दलित संघर्ष की सार्थकता को रेखांकित करती हैं। किसी भी दलित लेखक द्वारा लिखी गई आत्मकथा उसके जीवन के अनुभव से उत्पन्न चिन्तन है। यह लेखक के जीवन गाथा का चिन्तन होने के साथ-साथ उसे समाज की गाथा भी होती है। वह अपने जीवन के दुःख-दर्द और अपमान को भी स्वर देता है। ये दलित आत्मकथाएँ दलित समाज में सामाजिक चेतना और अस्मिताबोध जगाती है।1 दलित साहित्यकारों की रचनाओं ने और वि‛ोषकर आत्मकथाओं ने भारतीय साहित्य को नई दि‛ाा दी है। दलित साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में समाज के उस वर्ग की दुःख, तकलीफों, हँसी, खु‛ाी तथा जीवन के तमाम ऐसे पहलुओं को अभिव्यक्त किया जो साहित्य की दुनिया से सैकड़ों-हजारों सालों से समाज के अभिन्न अंग होते हुए भी समाज की बुनियादी सरोकारों से बहिष्कृत रखा गया। ब्राह्मणवाद ने इस निम्न वर्ग कही जाने वाली वर्ग की भूमिका ‘सेवक-दास’ तक ही सीमित रखी और जीवन-विकास के तमाम रास्ते व अवसर दलित के लिए बन्द कर दिये। दलित वर्ग के श्रम का ॉाोषण करने के लिए तथा इसके द्वारा सृजित चीजों को भोगने के लिए ‘जूठन’ खिलाकर इनके अस्तित्व को तो जिन्दा रखा गया, लेकिन साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र से बहिष्कृत करके इनकी आकांक्षाओं-अपेक्षाओं को मृत कर दिया गया। इस वर्ग को ‘पाप की संतान’ कहकर लांछित किया गया और इनको दया के लायक भी नहीं समझा गया। इनके लिए साहित्य के इतिहास में केवल अभि‛ााप ही दर्ज है। साहित्य के विद्वान साहित्य के बारे में सिद्धान्त गढ़ते रहे कि वह ‘समाज का आईना’ होता है। समाज की दुःख-पीड़ा को अभिव्यक्ति प्रदान करता है, साहित्य स्वभावतः प्रगति‛ाील व मानवतावादी होता है।’ लेकिन समाज की लगभग आधी आबादी को इस लायक ही नहीं समझा कि उसकी वास्तविकता को साहित्य में स्थान दिया जाय। ‘‘दलित आत्मकथाएँ केवल उनके लेखकों के जीवन के तथ्यों, सत्य घटनाओं का व्यौरा देने वाली रचना नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज और वि‛ोषकर हिन्दी भाषी क्षेत्र के हिन्दू समाज में व्याप्त ऊँच-नींच जातिगत पूर्वाग्रह एवं घृणा-हिंसा को उद्घाटित करने वाली रचनाएँ हैं।2References
चर्चित हिन्दी की दलित आत्मकथाएँ एक मूल्यांकन - डाॅ. ललिता कौ‛ाल, प्रका‛ाक- साहित्य संस्थान, गाजियाबाद, प्रथम संस्करण - 2010, अपनी बात से
दलित आत्मकथाएँ अनुभव से चिन्तन - सुभाष चन्द्र, इतिहासबोध प्रका‛ान, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण - जनवरी 2006, पृ0सं0 - 9.
चर्चित हिन्दी की दलित आत्मकथाएँ एक मूल्यांकन - डाॅ. ललिता कौ‛ाल, प्रका‛ाक- साहित्य संस्थान, गाजियाबाद, प्रथम संस्करण - 2010, अपनी बात से
अपेक्षा - सं. तेजसिंह, जुलाई-दिसम्बर 2010, अंक - 32-33, वर्ष 9, पृ0सं0 41.
अपेक्षा - सं. तेजसिंह, जुलाई-दिसम्बर 2010, अंक: 32-33, वर्ष 9, पृ0सं0 34.
जूठन - ओमप्रका‛ा वाल्मीकि, राधाकृष्ण प्रका‛ान, दरियागंज, नई दिल्ली, संस्करण - 1997 भूमिका से
वही0 पृ0सं0 11-12.
वही0 पृ0सं0 13.
अपने-अपने पिंजरे - मोहनदास नैमि‛ाराय, वाणी प्रका‛ान, नई दिल्ली, पृ0सं0 22.
चर्चित हिन्दी की दलित आत्मकथाएँ एक मूल्यांकन - डाॅ. ललिता कौ‛ाल, प्रका‛ाक - साहित्य संस्थान, गाजियाबाद, प्रथम संस्करण - 2010, पृ0सं0 80
मेरा बचपन मेरे कंधों पर - डाॅ. ॉयौराज सिंह बेचैन, वाणी प्रका‛ान, दरियागंज, नई दिल्ली, पृ0सं0 22.
मेरा बचपन मेरे कंधों पर - डाॅ. ॉयौराज सिंह बेचैन, वाणी प्रका‛ान, दरियागंज, नई दिल्ली, संस्करण - प्र0 2009, पृ0सं0 312
वही0 पृ0सं0 - 326
अपेक्षा - सं. तेजसिंह, जुलाई-दिसम्बर 2010, अंक - 32-33, वर्ष 9, पृ0सं0 43
दोहरा अभि‛ााप - कौ‛ाल्या बैसंत्री, प्रका‛ाक- परमे‛वरी प्रका‛ान, दिल्ली, सं. 2009, भूमिका से
घुटन - डाॅ. रमा‛ांकर आर्य, प्रका‛ाक - नेहा प्रका‛ान, प्रथम संस्करण - 2007, पृ0 सं0 57
नागफनी - रूपनारायण सोनकर, प्रका‛ाक - ‛िाल्पायन प्रका‛ान, ॉााहदरा, दिल्ली, संस्करण - 2007, पृ0 सं0 32
वही0 पृ0सं0 32
मुर्ददिया - डाॅ. तुलसीराम, प्रका‛ाक - राजकमल प्रका‛ान प्रा.लि., 1 बी, नेताजी सुभाष चंद्र मार्ग, नई दिल्ली, संस्करण - 2010, पृ0सं0 85
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