हमारी संस्कृति और आध्यात्मिक मूल्य

Authors

  • नंदी पटोदिया समाजषास्त्र एवं समाजकार्य विभाग डाॅ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विष्वविद्यालय सागर (म. प्र.)

Abstract

हमारी संस्कृति की जड़े आध्यात्मिक मूल्यों में है। धर्मनिरपेक्षता का यहाॅं अर्थ अधार्मिकता, नास्तिकता या भौतिक आराम पर जोर दिया जाना नहीं है। उसका अर्थ यह है, कि आध्यात्मिक मूल्यों की सार्वलौकिकता पर जोर दिया जाये, जिसे विभिन्न तरीकों से प्राप्त किया जा सकता है। धर्म निरन्तर परिवर्तित होते रहने वाला अनुभव है, यह एक आध्यात्मिक चेतना है। विविधता मे ंएकता सदैव भारतीय संस्कृति का विषिष्ट गुण रहा है। जीवन के संबंध में एक समान आध्यात्मिक दृष्टिकोण जिसमें विभिन्न जातियों और धर्मो का योगदान रहा है, हमारी संस्कृति की विषेषता रहा है। हमारा सांस्कृतिक इतिहास दर्षाता है कि एकता का सूक्ष्म किंतु मजबूत धागा, जो उसके जीवन की अंनत विविधताओ में से होकर जाता है, सत्ता के बल या दबाव से नहीं पिरोया गया, बल्कि भविष्यदृष्टाओ की दूरदृष्टि, संतो की चेतना, दार्षनिको का चिंतन और कवि कलाकारों की कल्पनाओं का परिणाम है, ओर केवल ये ही ऐसे माध्यम है, जिनका हमारी सांस्कृतिक एकता को व्यापक, मजबूत और स्थायी बनाने में उपयोग किया जा सकता है। पूर्व और पष्चिम के महान विचारकों ने विज्ञान और आध्यात्मिक जीवन दोनों की जरूरत महसूस की है। सभ्यता का उद्देष्य है हमें यह जताना कि हमारे भीतर सृजनषीलता है। व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करके भौतिक तथा आध्यात्मिक दासता की कोटि में नहीं पहुॅचा देना चाहिए।

References

हुसैन. एस आबिद, भारत की राष्ट्रीय संस्कृति, नेषनल बुक ट्रस्ट, दिल्ली।

डाॅ. एस. राधाकृष्णन् - हमारी संस्कृति, हिन्द पाॅकेट बुकस, दिल्ली।

डाॅ. एस. राधाकृष्णन् - हमारी विरासत

कुरूक्षेत्र एवं योजना मासिक पत्रिका - सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार

समाचार पत्र, पत्रिकाएॅ, इन्टरनेट

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Published

2014-05-31

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Articles