मध्यप्रदेश में पर्यटन विकास एवं सम्भावनाएँ

Authors

  • अनिता अग्रवाल अतिथि विद्वान (भूगोल) शास. कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय बरेला, जबलपुर (म.प्र.) सारांश

Keywords:

संपोषित विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, वन्यजीव, अर्थव्यवस्था, प्रबंधन।

Abstract

मध्यप्रदेश में पर्यटन की अपार संभावनाएँ हैं तथा पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश को भारत का दिल कहा जाता है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का दूसरा बड़ा राज्य है। (3,08,000 वर्ग कि.मी.)1 जो भारत की कुल जनसंख्या का (2011) (7,25,97,565) का 6.1 प्रतिशत है।2 म.प्र. का एक तिहाई हिस्सा वन संपदा के रूप में संरक्षित है जहां पर्यटक वन्य जीव को पास से जानने का अद्भुद अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। म.प्र. की अपनी संस्कृति है और धार्मिक परम्परायें हैं, उनके उत्सव मेलों में रंग भरती है। म.प्र. प्राकृतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक चारों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इस राज्य में विन्ध्याचल व सतपुड़ा पर्वत श्रेणियाँ तथा नर्मदा, ताप्ती, चम्बल, सोन, बेतवा, इन्द्रवती व महानदी जैसी सरिताओं ने प्राकृतिक सोन्दर्य को बढ़ाया है। पचमढ़ी की सुन्दरता, भेड़ाघाट की संगमरमर की चट्टानें, धुँआधार प्रपात, विचित्र प्रकार के बारहसिंहा के लिये कान्हा नेशनल पार्क, बांधवगढ़ किला व राष्ट्रीय नेशनल पार्क प्रागैतिहासिक गुफाएँ व वन्य जीवों के लिये प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। म.प्र. में स्थित किले, महल, स्तूप, अभ्यारण गुफाएँ व स्मारक पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। ग्वालियर, माण्डू, दतिया, चन्देरी, जबलपुर, ओरछा, रायसेन, साॅची, विदिशा, उदयगिरि, भीमबेटिका, इन्दौर व भोपाल ऐसे स्थान हैं जो प्राचीन स्मारकों के लिए विख्यात है, महेश्वर, ओंकारेश्वर, उज्जैन, चित्रकूट व अमरकटंक प्राकृतिक तीर्थ स्थान हैं। खजुराहो के मंदिर विश्व में प्राचीन संस्कृति के अनूठा उदाहरण है। सतना, साॅची, विदिशा, ग्वालियर, उज्जैन, भोपाल, रीवा पुरातात्वीय महत्व के भण्डार हैं। पन्ना, पेंच और सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान, ओरछा, भोजपुर और उदयपुर के मंदिर तीर्थ यात्रियों को आकर्षित करते हैं।

References

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Published

2014-05-31

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