कृषि भूगोल में नवाचारों की भूमिका
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Abstract
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से भूगोल में कई अभिनव प्रवृत्तियों का विकास हुआ है। और उसके बाद विकास की इच्छा संसार के सभी देशों एवं समाजों में पायी जाने लगी है, जिसका सम्बन्ध सामाजिक कल्याण से होता है। इसके उपादानों में उत्पादन बढ़ाना, लाभों का समान वितरण तथा पर्यावरण का संरक्षण करना है। आधुनिक समय में बिना उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाए हुए लोगों का कल्याण संभव नहीं है। उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने के लिए नवीन तकनीकियों, तरीकों, विधियों एंव निवेश की प्रक्रिया को आधार बनाते हुए कुशल बनाया जा सकता है। उन्नत कृषि तकनीक, नवीन उपकरण, निवेश की प्रक्रिया तथा कृषि की विधियों का उपयोग करना ही कृषि का आधुनिकीकरण कहलाता है, जिसके द्वारा उत्पादन एवं उत्पादकता बढायी जा सकती है। इन सभी प्रकार की विधियों को ही कृषि भूगोल में नवाचार के नाम से जाना जाता है। ये नवाचार पूर्व से काम में आने वाली विधियों का संशोधित स्वरूप या नये तरीके हो सकते हैं जैसे- अधिक उत्पादन देने वाले बीज, रासायनिक उर्वरक, यन्त्र व उपकरण तथा कृषि की नवीनतम विधियां एवं प्रविधियाॅं इत्यादि। नवाचार का मूलभूत आधार ‘नये विचार’ से सम्बन्धित होते हैं। नवाचार की दो प्रक्रियाऐं हैं।
(1) प्रसार अथवा प्रसरण
(2) अपनाना अथवा अभिग्रहण
प्रसार अथवा प्रसरण प्रक्रिया का तात्पर्य नवीन विचारों, वस्तुओं व विधियों एवं प्रविधियों का उनके उद्गम केन्द्र से उपभोक्ताओं तक पहुंचाने की विधि है। अपनाना अथवा अभिग्रहण प्रक्रिया का अर्थ व्यतियों एवं समाज द्वारा विचारों, विधियों, प्रविधियों एवं निवेशों का लम्बे समय तक सतत् उपयोग करने से है।
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