करना ही होना है।यानि जो किया जा रहा है वही हो रहा हैए इसलिए जरूरी है कि वही किया जाए जो मानवता के लिए सही हो।

Authors

  • Rakesh Vishvakarma Department of Development and Peace Studies,School of culture,Lok nayak bhawan, Mahatma Gandhi International Hindi University, Post Gandhi Hill, Wardha-442005 Maharashtra INDIA

Keywords:

Abstract

राज्य जनित सांप्रदायिक हिंसा से तात्पर्य ऐसी  हिंसा से हैएजो राज्य के द्वारा प्रेरित और संरक्षित होती है ।और राजनीतिक रूप से  इसका सीधा फ़ायदा सत्तापक्ष अथवा विपक्ष दोनों को होता है । इस हिंसा के समय राज्य की निष्क्रियता अथवा हिंसक गतिविधियों पर अंकुश न लगाना भी उसका प्रेरक तत्व हो सकता है। इसका स्वरूप हमें औपनिवेशिक काल से ही देखने को मिल जाता है जिसमें अंग्रेजों ने अपने लाभ के लिए दो अलग.अलग संप्रदाय के लोगों को लड़ाया एवं उसका उचित लाभ भी लियाए जिससे वह लगभग 200 सालों तक भारत पर शासन करते रहे । राज्य का चरित्र उसकी सत्ता संरचना के साथ ही हिंसक होता है इसलिए  इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राज्य एक हिंसक संस्था हैए लेकिन इसका सांप्रदायिक होना अपने आप में ये दर्शाता है कि राज्य अपनी सत्ता और शक्तियों के लिए कितना स्वार्थी होता  है। औपनिवेशिक काल से पहले इस तरह की घटनाएँ नहीं हुईं जिससे ये कहा जा सके कि आमुख राज्य का चरित्र सांप्रदायिक हैए या सांप्रदायिक हिंसा के लिए वह जिम्मेदार रहा है। इसका ये कारण भी हो सकता है कि उस समय जनतंत्र न होकर राजतन्त्र थाए जिसमें सत्ता का परिवर्तन नहीं होता था तथा सत्ता और शक्तियाँ एक ही व्यक्ति के अधीन होती थीं। न्यायालय राजा के अधीन रहने के कारण राजा के खिलाफ कोई वाद नहीं लाया जा सकता थाए लेकिन आधुनिक काल में मशीनीकरण और औद्योगीकरण के बाद सत्ता और शक्तियों का स्थानांतरण अनौपचारिक रूप से पूंजीपतियों के हाथों में चला गया।

References

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Published

2016-11-30