विज्ञापन वस्तु के रूप मंे महिला: टेलीविज़न की बदलती संस्कृति

Authors

  • रजनी . एम फिल.स्काॅलर राजनीतिक विज्ञान विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय

Keywords:

Abstract

इस लेख का सारांश यह प्रस्तुत करता है कि विज्ञापनो को वास्तविक रूप में स्वीकार किया जाए या जो वास्तविक है वही प्रस्तुत किया जाए। जहां महिलाओं के स्थान का दृष्टिकोण नकारात्मक है, इसी नकारात्मक दृष्टिकोण को बदलने का पुरजा़ेर प्रयास करना जरूरी है। जिसमें अहम भूमिका महिलाओं पर लिखे साहित्य निभाते है जो हमेशा उन्हे शोषित बताने का प्रयास करते है। महिलाआंे को अब सकारात्मक रूप देने की आवश्यकता है। वहीं समाज के लोगांे का मानसिक दृष्टिकोण नकारात्मक नहीं है बस इसे खुले तौर पर अपनाने से डरते है। स्त्री स्वमं की शक्ति के प्रति अब जागरूक होती जा रही है वह अपनी शक्ति का भरपूर प्रयोग कर शासन करने लगी है। क्योंकि आज भी क्या यह तो पहले भी था कि वह अब लोगो के दिल और दिमाग पर राज करने लगी है क्योंकि महिला हो या पुरूष वह सिर्फ महिला के बारे में ही सोचने लगे है

 

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Published

2016-12-31