सूर्यनमस्कार, योगनिद्रा, एवं ऊं कार उच्चारण का बच्चों के अंदर व्याप्त भय पर पड़ने वाले प्रभावों का प्रयोगात्मक अध्ययन

Authors

  • डा उपेन्द्र बाबू खत्री सहायक प्राध्यापक ( योग ), सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विष्वविद्यालय बारला, रायसेन, भोपाल मध्यप्रदेष

Keywords:

Abstract

बाल्यकाल निर्माण का काल हैं। किषोरावस्था ही एक ऐसी अवस्था हैं जिसमें तीव्र शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन होते हैं। यह परिवर्तन सुकोमल संरक्षण और आत्मीयता की अपेक्षा करता हैं, जिसे देने में आधुनिक पारिवारिक सामाजिक एवं शैतिक परिवेष असफल दिखाई दे रहे हैं। उम्र के इस नाजुक मोड़ पर अभिभावकों के स्नेह एवं सहयोग की जरूरत होती हैं। अभिभावक बच्चों की इस कोमल मनोवृत्ति को भांप नहीं पाते हैं अपितु माता - पिता का बच्चों के प्रति उपेक्षात्मक व्यवहार बढ़ रहा हैं, उतनी ही तेजी से उनकी बच्चों के प्रति अपेक्षाऐं बढ़ी हैं षिक्षा और कैरियर के दबाव में एवं परीक्षा में हर हालत में अधिकतम अंक लाने की हिदायत दी जाती बच्चे जब अपेक्षाएंे पूरी नहीं कर पाता हैं तो सहयोगात्मक रूख अपनाने की बजाय उसे डांटा फटकारा जाता हैं ऐसी अवस्था में बच्चा हीनता एवं श्य का षिकार हो जाता हैं। अपनी हीनता से उबरने की कोषिष उसे आक्रामक बना देती हैं। जो बच्चों को आत्महत्या करने तक के लिए मजबूर कर देती है।

References

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Published

2016-05-31

Issue

Section

Social Science & Humanities