एक विकासात्मक यंत्रा के रूप में भारत की लोक नीति
Keywords:
अराजकता ए न्यायपालिका मूर्तरूपAbstract
नीति निर्माण सरकार की सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्रियाओं में से एक है। इसे लोक प्रशासन का केन्द्रीय तत्व माना जाता है, क्योंकि लोक नीति निर्माण प्रक्रिया में सरकार के तीनों अंगो-कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका। किसी न किसी रूप में संबंधित होते हैं। दरअसल नीति वह माèयम या साध्न है जिसके सहारे लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है। किसी भी राष्ट्र के सामने आंतरिक एवं बाÞय कर्इ तरह की समस्याएँ होती है। इन समस्याओं से निबटने के लिए उन समस्याग्रस्त क्षेत्राों से संबंधित नीतियाँ बनानी पड़ती हैं। नीतियों के अभाव में न तो वर्तमान समस्याओं से निबटा जा सकता है और न ही भावी संकट को चिÉनि कर उसका समाधन किया जा सकता है और न ही भावी संकट को चिÉनि कर उसका समाधन किया जा सकता है। नीतियों का अभाव अंतत: अराजकता को ही आमंजित करता है।नीतियाँ ऐसा प्रमाणिक मार्गदर्शक है जो प्रबन्ध्कों को योजना बनाने, कानूनी आवश्यकताओं के अनुकूल कार्य करने तथा निर्धरित उíेश्यों को प्राप्त करने में सहायता देती है। हम ऐसा भी कह सकते हैं कि नीति ही एक ऐसे ढाँचे का निर्धरण करती है जिसके भीतर संगठनात्मक उíेश्यों को प्राप्त किया जाता है। प्रत्येक संगठन में कार्रवार्इ करने के पहले नीति निर्माण आवश्यक है। नीति निर्माण की प्रक्रिया शासन की केन्द्रीय प्रक्रियाओं में से एक है। अंत में, नीतियाँ उíेश्यों को निशिचत अर्थ प्रदान करती है। किसी भी संगठन के उíेश्य प्राय: सामान्य भाषा में लिखे रहते है, नीतियाँ इन्हीं उíेश्यों को मूर्तरूप प्रदान करती है।References
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