प्राचीन काल मे स्मृतियों का अध्ययन

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  • ज्योति कौषल -

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Abstract

स्मृतियांे का मुख्य उददेष्य मनुष्यो का आचार,व्यवहार व्यवस्था की षिक्षा देना था। स्मृति षास्त्र को धर्म के ज्ञाता मुनियो ने मुख्यतः तीन भागो मंे विभाजित किया है। आचार व्यवहार प्रायष्चित अथवा दंड। इन तीन विषयांे के बिना व्यक्ति और समाज का न तो विकास हो सकता है और न मनुष्य ‘‘समस्त प्राणियो के मुकुटमणि की उच्च पदवी को पा सकता है।’’ भारतीय धर्म का मूल वेद है। आस्तिक हिन्दुओ की मान्यता है कि वेदो मे जो ज्ञान राषि पायी जाती है। वह मानव मस्तिष्क का चमत्कार नही है। वरन एक ऐसा दैवीय ज्ञान है। जो सदा से है। और सदा रहेगा ऋषियो ने ‘‘श्रुति’’ षब्द को विष्व कल्याण की भावना से जगत मे प्रसारित किया है। विष्व को सभी विधाओ का ज्ञान एक साथ देना भी संभव भी नही था। क्योकि उस समय लिखने की प्रथा प्रचलन मेें नही थी। षिष्यगण जो कुछ आचार्य के मुख से सुनते थे। सुनकर उसे कंठस्थ कर लेते थे। उसी को श्रुति कहा गया है।

References

स्मृतियों को पढनंे से हमें यह ज्ञात होता है। स्मृति वेद षाड़मय से इतर ग्रंथो मे तथा पाणिनि व्याकरण गृहस्थ एवं धर्मसूत्रांे महाभारत मनु याज्ञवल्क्य एवं अन्य ग्रंथों से संबंधित है। दूसरे अर्थ मंे स्मृति एवं धर्मषास्त्र का एक ही अर्थ है। 8

मनुस्मृति के अनुसार वेद को श्रुति एवं धर्मषास्त्र को स्मृति जानना चाहिए। 9

श्रुति और स्मृति मे जो कहा है। वही धर्म है। 10

श्रुति तथा स्मृति ब्राहमणो में निर्मित दो नेत्र है। इनमे से एक से रहित काना तथा दोनांे से रहित अंधा है। 11

स्मृतियो से हमें धर्म अर्थ काम तथा मोक्ष आदि पुरूषार्थो का वर्णन मिलता है। अधिकांष स्मृतियाॅं पद्य मंे प्राप्त होती है। स्मृतियाॅं की कोई निष्चित संख्या नही मिलती है। स्मृति सीधे स्मरण षक्ति पर प्रभाव डालती है। स्मृति के बारे मे बौधायन ने और गौतम ने स्मृति को वेद के जानने वालो का स्मरण माना है।

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2017-06-30

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