आधुनिक टेक्नोलाॅजी का भील जनजाति की वधू-मूल्य प्रथा पर प्रभाव

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  • डाॅ.मीना जैन प्रो. मीना मावी -

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Abstract

झाबुआ जिला म.प्र. के पश्चिमी भाग में स्थित है।यह जनजाति बहुल जिला है, यहाँ 85 प्रतिशत जनजातीय जनसंख्या है। भारत की तीसरी बड़ी जनजाति, भील जनजाति है।इनका आर्थिक स्तर निम्न है, इनका मुख्य व्यवसाय कृषि है, इस जनजाति में वधू-मूल्य (दापा) प्रथा का भी प्रचलन है। चूंकि भील जनजाति की महिलाएं परिश्रमी व कर्मठ होती है, वे एक आर्थिक इकाई होती है। विवाह पश्चात वर के परिवार को इसका लाभ मिलता है, इसलिए क्षतिपूर्ति के रुप में विवाह के अवसर पर वर पक्ष द्वारा वधू के पिता को पशु , अनाज, अथवा नकद धन राशि दी जाती है। वधू-मूल्य प्रथा के कारण भील जनजाति में कन्या को बोझ नहीं समझा जाता है, जिससे गैर-जनजातीय समाज में प्रचलित दहेज-प्रथा के दुष्परिणामों से भील कन्याएं सुरक्षित होती है। सभ्य समाज से संपर्क एवं आधुनिक टेक्नोलाॅजी अपनाने के परिणामस्वरुप भील जनजाति में कई परिवर्तन परिलक्षित होते है। वधू-मूल्य प्रथा भी इससे अछूती नहीं है। अपने प्रारम्भिक स्वरुप में वधूमूल्य के रुप में नाममात्र धनराशि दी जाती थी, लेकिन वर्तमान में बेतहाशा वृद्धि ने इस प्रथा को एक सामाजिक समस्या में परिवर्तित कर दिया है। बाल विवाह, जन्म-दर वृद्धि,मातृ एवं शिशु मृत्यु-दर में वृद्धि, कुपोषण, घरेलू हिंसा, वैयक्तिक एवं पारिवारिक विघटन इत्यादि समस्याएं इसके साइड इफेक्ट के रुप में देखी जा सकती है।
प्रस्तुत शोध में आधुनिक टेक्नोलाॅजी, सभ्य समाज से संपर्क, एवं महिला शिक्षा आदि के कारण भील जनजाति की वधूमूल्य प्रथा में आए परिवर्तन एवं प्रभाव संबंधी तथ्यों का संकलन,विश्लेषण कर व्याख्या प्रस्तुत की गई है।

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Published

2017-06-30