चरण पादुका हत्याकांड
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दमन चक्र ष्षक्ति प्रदर्षन से जन-जागृति को दबाया नहीजा सकता। वास्तव में जन जागरण की ष्षक्ति ऐसी है जो एक बार जागृत होने पर अपना कार्य समाप्त किए खत्म नहीं होती चाहे उसके लिए उसे कितनी कुरवानियाॅ ही क्यो न देनी पडी जन-जागरण से अधेेरे का षासन खत्म हो कर नया सवेरा आता हैं जो आषा की नई किरण के सामान होता हैं। यही स्थिति बुंदेलखंड क्षेत्र की थी।
ब्रिटिष षासन और रियासती षासन के कुषासन से जनता त्रस्त हो चुकी थी करो का भार असहनीय हो चुका था। पाॅलिटिकल एजेट नौगावं ने यघपि कोल-मील पलटन के प्रदर्षन जनता में भय फैलाने का प्रयत्न किया किन्तु वह उददेष्य में सफल नही हो सका।उसके षक्ति प्रदर्षन और नेताओं की गिरफ्तारी के पष्चात भी राजनैतिक सभाओ का आयोजन होता रहा। इसी श्रृखला मेें छतरपुर राज्य के अंतर्गत 14 जनवरी 1931 को चरण पादुका को यह धटना धटित हो गयी जिसे इतिहास में बुदेलखंड के चरणपादुका हत्याकांड” के नाम से जाना जाता हैं। 14 जनवरी 1931 को हर वर्ष की भाति मकर संक्रति चरणपादुका पर मेला भरा। इस वर्ष के मेले में अन्य वर्ष से अधिक भीड थी क्योकि देषी राज्यो की जनता पडौसी ब्रिटिष प्रांत की जनता से मिलकर उर्मिल नदी के किनारे चरणपादुका नामक स्थान पर अपने नेता को मुक्त किये जाने के लिए एक बहुत बडा प्रदर्षन करने जा रही थी। दिसंबर 1930 व जनवरी 1931 के पूर्वाध्द की गतिविधियों में विषेषकर ए.जी.पी. व पोलिटिकल एजेंट के भ्रमण कार्यक्रमो व उनके वक्तव्यों और दमनचक ने जन-जन में मर मिटने की भावना पैदा कर दी थी। हर व्यक्ति भारत माता की बलिवेदी पर न्यौछाबार होने के लिए तत्पर हो उठा।
चरणपादुका में मकर संक्रति के इस पावन अवसर पर जिस विषाल सभा का आयोजन किया गया उसका सभापतित्व सरजू दउआ ने किया। रामसहाय तिवारी की गिरफ्तारी से रिक्त मंत्री पद स्थान की पूर्ति लल्लूराम ने की। स्थानपन्न मंत्री की हैसियत से उन्होने जनता को संबोधन करते हुए उन तत्कालीन परिस्थितियो पर प्रकाष डाला और दृढतापूर्वक मांग रखी कि उनके नेतागण को सरकार द्वारा तत्काल रिहा कर देना चाहिए।
जब सभा की कार्यवाही अपनी गति पर ही थी उसी समय बुंदेलखड एजेंसी के पाॅलिटिकल एजंेट फिसर पुलिस पल्टन के साथ वहाॅं पहुॅच गए।
उसी समय चैदह.पनद्रह. बसो द्वारा फौज सभा स्थल पर पहुॅची और सभा स्थल को चारो ओर से धेर लिया और गन मषीन फिट कर दी गई।
आयोजको ने सभा स्थगित करने से इकांर कर दिया तो फिषर ने गोलो दागने का आदेष दिया। ”टीम देम ए लेषन” गोरे अफसरो का तकिया कलाम था। और सबक सिखाने का एकमात्र उपाय। उनकी दृष्टि में था बर्बरतापूर्ण यानि गोली चालन। सिपाहियों ने गोलियो की बाढ लगा दी।
”परिणामस्वरूप् सरकारी सूवना के अनुसार इक्तीस व्यक्ति मारे गये और छब्बीस धायल हो गये तथा सैकडो व्यक्तियो को साधारण चोटे आयी किन्तु जैसे ज्ञात है कि संख्या उससे कही अधिक थी यही नही बहुत सी लाषों को उर्मिल नदी की बालू में दबाकर यह बताने की कोषिष की गयी कि व्यक्ति कम मरे।
धटना स्थल पर लाषो के डेर लगे थे चारो और चीख पुकार मची हुई थी व्यक्ति-व्यक्ति को न देख पा रहा था ओर न ही पहचान पा रहा था। जैसा इसकी गंभीरता को स्पष्ट करने के लिए उपयुक्त कहा गया हैं कि ”देखी गयी तभी उतरती,लाषे नदिया रानी में।
वास्तव में उस समय के कार्यकर्ताओं का मत था। कि सरकारी आंकडो में कम से पनद्रह गुना अधिक थी। सकरकार ने निहत्थी और षांत जनता पर मषीन के दस राउंड चलाये और मैदान को लाषो से व धायलो से पाट दिया था।
निष्चिय ही इतिहास की पुनरावृत्ति होती जैसे जलियांवाला हत्याकंाड की पुनरावृत्ति बुंदेलखड के छतरपुर में चरणपादुका हत्याकंाड के रूप् था फर्क केवल इतना था कि जलियांवाला हत्याकंाड में जनरल डायर ने जनता को भून डाला था और यहां उस समय के बुंदेलखंड एजेसी के पाॅलिटिकल एजेट फिषर और उनकी पुलिस पलटन आताताई कोई भी हो नुकसान तो मासूम निरीहजनता को भरना ही पडा न जाने कितने मारे गए कितने धायल हुए विवाद की स्थिति हैं।
छतरपुर का गोलीकांड इतिहास प्रसिध्द है जो आज भी ब्रिटिष षासक के आतंक की कहानी क्या करता हैं। दिसंम्बर 3 अक्टूबर को बुंदेलखंड एजेसी के राजनीतिक एजेंट मेजर फिषर द्वारा केप्टन षुलधाम केंद्रीय भारत में गर्वनर जनरल के सचिव को लिखे पत्र में पन्ना राज्य के वानगंाव में 23 सितंबर 1930 को आयोजित तथा राजस्व कर नही चुकाने जैसे राज्य विरोधी मुद्रदो पर विचार किया गया। छतरपुर के परगने की स्थिति के बिगडने का भी वर्णन मिलता हैं।
ब्ुदेलखंड एजेंसी राजनीतिक एजेंट द्वारा गर्वनर जरनल के एजेंट को प्रेषित रिर्पोट में बुदेलखंड की स्थिति को खतरनाक बताया था। क्योकि छतरपुर बताया था। क्योकि छतरपुर राज्य स्थिति से निपटने में अक्षम सिध्द हुआ तथा इस क्षेत्र में डाकू मंगलसिंह का विद्रोहियों को समर्थन देना और उसके द्वारा स्वमं को राजा संबोधित करावाना तथा मंगलपुर नामक राज्यो से सीधा लडाई लेना था।
अतः उसका गिरफ्तार होना या उसका मरवा डालना अत्यंत आवष्यक था। इसका अलावा आंदोलनकर्ताओ की सभा में वक्ताओं सभा में वक्ताओ सभा के प्रचार को राज्य षासन से सीधी लडाई लेने वाले विद्रोहीयों को विषेषतः नादियाग्राम के ठाकुरो को गिरफ्तार करना आवष्यक बतलाया गया हैं।
दिनाॅक 2 अक्टूबर को छतरपुर राज्य के महाराजपुर गांव में जो क्षेत्रीय पान उधोग का केन्द्र स्थान था। एक सभा था। एक सभा आयोजित की गई। जिसमे ं राज्य षासन द्वारा पान की पैदावार तथा निर्यात पर लगाये गये अधिक ऊचे करो का विरोध करना तय किया गया। इस आंदोलन को दवाने में ओरछा,बिजाबर तथा छतरपुर के दीवान उचित कदम उठा रहे थे। किन्तु ब्रिटिष राजनैतिक एजेंट के समझाने पर कठोर कार्यवाही की गई तथा आंदोलन कारियों को गिरफ्तार करके 144 धारा लगाई गई तथा स्थिति को सामान्य बनाने में आवष्यक कदम उठाये गये।
छतरपुर राज्य के मलहरा के निकट सभा में काग्रेसी झंडा फहराया गया जिसे बाद में नाजिम तहसीलदार द्वारा हटाया गया।
3 अक्टूबर 1930 को वानगंाव में आयोजित सभा जिले छतरपुर, बिजाबर चखारी तथा लुगासी जागीर के लगभग 2000 आंदोलन कर्ता षामिल हुए थे।
स्न्र 1930 को दषहरा के दिन छतरपुर के दिन छतरपुर रियासत के महाराजपुर नामक ग्राम में कुॅवर हीरासिंह रामसहाय तिवारी द्वारा एक आम सभा में जन साधारण से षासन को कर नही देने की अपील की गई थी। इस बृहद रैली के स्थल पर पुलिस दल के साथ प्रथम श्रेणी मजिस्टेªट नाजिर फजलहक के पत्र से ज्ञात होता है कि कर प्रणाली की संषोधन आवष्यकता को स्वमं महसूस भी कर रहे हैं।
छतरपुर के पान की पैदावार पर षासन द्वारा लगाया कठोर कर के विरोध में निकाले गए झडां जुलूस को तहसीलदार तथा नाजिम द्वारा बलपूर्वक बिखरा दिया गया तथा काग्रेस के झंउे को आंदोलन कारियों से छीन कर फेक दिया गया। जिससे आक्रोषित जनता ने अफसरो की पिटाई भी कर दी थी।
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