प्राचीन मध्यकालीन एवं आधुनिक समाजसुधार में संतपरंपरा अर्थात् विभिन्न पुर्नजागरण ‘स्वामी विवेकानंद’

Authors

  • डाॅ. राजकुमारी सोनी -

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Abstract

19 वी शताब्दी में धार्मिक एवं समाज सुधार आंदोलन भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्ािान रखते है। पष्चिमी संस्कृति से प्रभावित भारतीय संस्कृति ने जिस नवीन विचारधारा को जन्म दिया, जिस प्रकार धर्म और समाज में परिवर्तन करने का प्रयत्न किया और जिस प्रकार भारत के राष्ट्रीय जीवन के सभी क्षेत्रों में एक नवीन चेतना प्रारंभ हुई उस चेतना, भावना और उससे प्रभावित विभिन्न प्रयत्नों को पुर्नजागरण आंदोलन के नाम से जाना जाता है। जिस प्रकार 16 वी शताब्दी में यूरोप में हुए पुर्नजागरण ने यूरोप के धर्म, समाज, साहित्य, कला आदि सभी को प्रभावित किया था, उसी प्रकार 19वी शताब्दी में भारत के पुर्नजागरण आंदोलन में भारतीय जीवन के सभी क्षेत्रों में परिवर्तन किया।

बी.बी. कुलकर्णी ने लिखा है
‘‘ब्रिटिष सरकार ने कुछ भयानक सामाजिक कुरूतियों का भी विध्वंष किया यद्यपि यह कार्य बड़ी झिझक के साथ किया गया था। इससे भारतीय स्वतंत्रतापूर्वक पाष्चात्य सभ्यता में प्रवेष कर सके। देष के सामाजिक तथा राजनैतिक पुर्नजागरण में अंग्रेजी षिक्षा से अपूर्व सहायता मिली और यही इस देष के लोगों की भावनात्मक एकता की आधारषिला बन गई।’’
भारत में हिंदू तथा मुसलमान दो बड़ी जातियां निवास करती है उस समय इन दोनों ही जातियों के सामाजिक जीवन में अनेक कुरूतियां निवास कर गयी थी। बाल हत्या, सती प्रथा, निरक्षरता, दलित वर्गाें की दुर्दषा इत्यादि भारतीय समाज में कतिपय दोष आ गए थे। इन कुरूतियों के कारण भारतीय समाज पतन के कगार पर खड़ा था। धार्मिक क्षेत्र में भी यही बात थी। आडम्बरपूर्ण मूर्तिपूजा तथा अंधविष्वास भारतीय जीवन का अंग बन गये थे। अतः ऐसी स्थिति में अनेक प्रबुद्ध भारतीयों का ध्याान इस ओर गया और उन्होंने अनुभव किया कि यदि भारतीय सामाजिक एवं धार्मिक जीवन में सुधार नहीं किया गया तो संपूर्ण हिंदू समाज छिन्न-भिन्न हो जाएगा। नारायण गुरू ने भी ‘एक धर्म एक जाति तथा मानव के लिए एक ईष्वर’ का आव्हान किया। अतः उस समय प्रत्येक दृष्टिकोण से भारतीय सामाजिक व्यवस्था पतन की ओर अग्रसर थी। समाज में इसके विरूद्ध बहुत बड़ी प्रतिक्रिया हुई एवं इनके समाज सुधारकों ने तथा कथित भारतीय समाज के दोषों को दूर करने के लिए आंदोलन लिए। सारा देष, सामाजिक एवं धर्म सुधार आंदोलन की लहर में ओतप्रोत होने लगा।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस के षिष्यों में सबसे अधिक विख्यात स्वामी विवेकानन्द हुए, जो एक विख्यात सुधारक तथा चिंतक हुए। इनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था।
विवेकानंद का जन्म 9 फरवरी 1861 ई. में कलकत्ते के एक सभ्रान्त परिवार में हुआ था। प्रारम्भ में ये नास्तिक थे और ईष्वर में इनकी बिल्कुल आस्था न थी परंतु जब ये स्वामी रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आये तब ये आस्तिक हो गये और ईष्वर की सत्ता में इनका दृढ़ विष्वास हो गया।
1886 में गुरू की मृत्यु के पश्चात् उन्होंने सन्यास धारण कर लिया और धार्मिक ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया। विवेकानन्द नवीन हिन्दू धर्म के प्रचारक के रूप में उभरे वे बौद्धिक जड़ताओं के दौर में आध्यात्मिक चेना के दृढ़ प्रचारक बन गये।
सन् 1893 में षिकागों के सर्व-धर्म-सम्मेलन (पार्लियामेंन्ट आफ रिलिजन्स) हुआ तब विवेकानन्द जी ने उसमें भाग लिया। इस सम्मेलन में उन्होंने हिन्दू धर्म तथा वेदान्त दर्षन की बड़ी योग्यतापूर्ण व्याख्या की। उनके व्यक्तित्व तथा व्याख्या का लोगों के उपर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। अमेरिका में वह तीन वर्ष तक रहें और हिन्दू धर्म के प्रचार का प्रसार करते रहे। अमेरिका से वे इंग्लैण्ड तथा यूरोप से अन्य देषों में गये और अपने विचारों को प्रचार किया। और भारत लौट आए। यहां पर उन्होंने 1 मई 1897ई. ‘‘रामकृष्ण मिषन’’ नामक संस्था की स्थापना की जिसनें समाज-सेवा के बड़े ही प्रषंसनीय कार्य किये।’’
इस संस्था की स्थापना स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस की षिक्षाओं का प्रचार करने के लिए किया था। जिसके अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति का धर्म अच्छा और सच्चा है, ईष्वर निराकार तथा सर्व-व्यापक है, हिन्दू-सभ्यता सबसे अधिक प्राचीन तथा श्रेष्ठ धर्म है। प्रत्येक हिंदू को यथा शक्ति अपने धर्म तथा अपनी सभ्यता की रक्षा करनी चाहिए।
भारतीय संस्कृति एवं जागृति के लिए स्वामी विवेकानंद ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने भारतीय सभ्यता तथा धर्म का पुनरूत्ािान कर हिन्दू धर्म तथा संस्कृति की महान सेवा की, जिसके लिए भारत उनका सदा ऋणी रहेगा।
स्वामी विवेकानंद के विचार भारतीय दर्षन, धर्म, कला, साहित्य, राजनीति, प्रगति आदि सभी के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने वाले सिद्ध हुए और उन सभी से भारतीय सभ्यता की प्रगति में सहायता प्राप्त हुई। निःसंदेह स्वामी विवेकानंद का हिन्दुओं में जाग्रति, पुनरूद्धार आंदोलन तथा भारतीय राष्ट्र और सभ्यता के निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा।

References

लेखक का नाम पुस्तक का नाम

डाॅ. ए.के. मित्तल - भारतीय इतिहास (एम.पी.पी.एस.सी.) पृ. 389

श्री नेत्र पाण्डेय - आधुनिक भारत का इतिहास (1757-1857) पृ.-11

डाॅ. ए.के. मित्तल - भारतीय इतिहास (एम.पी.पी.एस.सी.) पृ. 389

श्री नेत्र पाण्डेय - ‘‘भारतवर्ष का वृहत इतिहास’’ (1527ई.-1982ई. तक) पृ.-258

डाॅ. मनोज परिहार - ‘‘उपकार’’ यू.जी.सी. नेट/जे.आर.एफ./स्लेट

श्री नेत्र पाण्डेय - ‘‘भारतवर्ष का वृहत इतिहास’’ (1527ई.-1982ई. तक) पृ.-258

श्री नेत्र पाण्डेय - वही पृ. 258

डाॅ. ए.के. मित्तल - भारतीय इतिहास (एम.पी.पी.एस.सी.) पृ. 389

डाॅ. ए.के. मित्तल - वही पृ. 389

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Published

2017-06-30