प्राकृतिक वनस्पतियाँ एवं वन्य जीव संरक्षण: रीवा जिले के सन्दर्भ में

Authors

  • डाॅ. बी.के.ष्शर् डाॅ. इन्द्रेष कुमार द्विवेदी भूगोल विभाग, शास. महाविद्यालय नईगढ़ी, रीवा (म.प्र.)

Keywords:

Abstract

किसी भी क्षेत्र की जैव विविधता जीवन के सतत् विकास की प्रक्रिया का परिणाम है। प्रक्रितिक संपदा के अंधाधंुध दोहन से हवा, पानी, मिट्टी तक ष्शुद्ध नही रह गई है। जंगलों के निरंतर कटने से विभिन्न प्रजातियां एवं औश्षधीय वनस्पतियां विलुप्त होती जा रही है जिससे जैव विविधता में कमी और मानव के षिकारी प्रवृत्ति के कारण वन्य जीव तेजी से विलुप्त होते जा रहे हैं जो चिंता का विशय है। रीवा कुल भूमि का 16.26 प्रतिषत है। यहाँ स्तनधारी वर्ग - षाकाहारी, मांसाहारी तथा पक्षी एवं सरीसृप के अलावा अन्य वन प्रजातियाँ हैं। वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण अत्यन्त आवष्यक है अन्यथा पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ जाएगा और मानव जीवन खतरे में पड़ जाएगा। हमारे अटल विष्वास का परिणाम है जिसके आधार पर हम मानव को वन एवं वन्य जीव रक्षक बनने का सपना देखा है। इस षोध पत्र के माध्यम से सभाी को वनों एवं वृक्षों के प्रति हृदय परिवर्तन चाहा है-
हम पर तुम्हारी जब चलती कुल्हाड़ी, कसम से तड़पती है रूहे हमारी।
बचाना हमे इसलिए है जरूरी, कि तेरी अभी अस्मिता है अधूरी।
न काटो ..................................................हमे हम तुम्हारे लिए हैं।
पर्यावरण सन्तुलत व प्रकृति के अभिन्न्ा अंग के रूप में वनों की भूमिका सार्वभौमिक है। मानवता व समाज को सुखी व सम्पन्न्ा बनाए रखने हेतु प्राकृतिक सन्तुलन आनिवार्य है। वर्तमान में प्राकृतिक सन्तुलन हमारे सामने सबसे बड़े संकट के रूप में है। वन विनाष हमारे सामने अनेक सामाजिक एवं पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न्ा करता है। आज वन संसाधनों के प्रबन्धनों के सो प्रयास चैराहे पर हैं। एक तरफ प्रकृति में आवष्यक पारिस्थितिक प्रक्रिया एवं जीवन सह तंत्रों की निरंतरता संकट में है और दूसरी ओर वनों एवं संरक्षित क्षेत्रों के मध्य निवास करने वाले लोगों की सम्मानजनक आजीविका के साधनों की सुरक्षा दाँव पर लगी है। यही हमारा मूल चिन्तन है, जिसका टिकाऊ, स्वीकार्य तथा लोकोपयोगी समाधान खोजने का प्रयास इस कार्य में हुआ है।
भौतिकता और बाजारवाद की दौड़ में हर व्यक्ति और समाज पर स्वार्थ हावी होता चला गया है। प्र्रकृति का अंधाधुन्ध दोहन किया गया है। हवा,पानी, मिट्टी तक षुद्ध नहीं रह गयी हैं। जंगल निरंतर कटते जा रहे है। पेड़ पौधों की विभिन्न प्रजातियाँ, औशधीय वनस्पतियाँ विलुप्त होती जा रही हंै। वन क्षेत्र के सिकुड़ते जाने तथा जैव विविधता में कमी और मानव की षिकारी प्रवृत्ति के कारण वन्य जीव तेजी से विलुप्त हो रहें हैं। षासन ने वन्य जीवों के संरक्षण के लिये विभिन्न अभ्यारण्य एवं राश्ट्रीय उद्यान बनाए, वनो को सुरक्षित और संरक्षित करने की ढेर सारी योजनाए भी चलाई, लेकिन वास्तविकता यही है कि तमाम कानूनांे की सख्ती के बीच भी वनस्पतियों एवं वन्य जीवो में कमी होती जा रही है जो चिन्ता का विशय है।
रीवा जिला मध्यप्रदेष के प्राकृतिक विभाग रीवा-पन्ना पठारी उच्च भूमि के अन्तर्गत आता है जो 24018’ से 25018’ उत्तरी अक्षांष एवं 81021’ से 82018’ पूर्वी देषान्तर के मध्य स्थित है। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 6314 वर्ग कि.मी. है तथा इस क्षेत्र के अन्तर्गत 659.81 वर्ग कि.मी. आरक्षित वन तथा 376.16 वर्ग कि.मी. संरक्षित वन हैं। इस प्रकार कुल वन क्षेत्र 1026.98 वर्ग कि.मी. है जो कि भौगोलिक क्षेत्रफल का 16.26 पतिषत है। यह स्पश्ट है कि रीवा राजस्व वन मण्डल में स्थित वन क्षेत्र चिन्तनीय है क्योंकि जितना वन क्षेत्र होना चाहिए उसमें यह जिला काफी पीछे है। मध्यप्रदेष राज्य की तुलना करने पर भी यहां जैव विविधता की स्थिति काफी चिन्ताजनक है। जैव विविधता का पर्यावरण सन्तुलन के साथ प्रगाढ़ संबंध है। अतः वन्य प्राणियों की स्थिति एवं दशाा का समुचित प्रबंधन बेहतर वन प्रबंध हेतु आवश्यक है। आज आवष्यकता है जन सहयोग की और यह तभी सम्भव है जब विभिन्न वानिकी योजनाओं के अन्तर्गत वृक्षारोपण् वन परिस्थितिकीय तंत्र के सामन्जस्यपूर्ण प्रबंधन के लिए वन प्राणी एक महत्वपूर्ण कड़ी है। वन प्राणियों की विपुलता एवं उनको प्रबन्धन के लिए ऋण एवं संसाधन उपलब्ध कराये जाये और इन सब की जानकारी जन जागृति के माध्यम से ग्रामीणों तक पहुंचायी जाये तथा इनकी प्रक्रिया सरल एवं सुवोध हो।

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Published

2017-06-30