सामाजिक परिवर्तन एवं विकास में महिलाओं की सहभागिता
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Abstract
वर्तमान युग नारी शक्ति का युग कहा जाता है । आज प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं ने अपने हुनर और प्रतिभा का परचम लहराया है । आज महिलाएँ वे सभी कार्य का सामथ्र्य रखती है जिन पर कभी पुरूषों का अधिपत्य था शिक्षा, चिकित्सा, तकनीकी विज्ञान, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व्यापारिक, औद्योगिक, विज्ञापन एवं मीडिया प्रत्येक क्षेत्र में महिलाएँ पुरूषों के साथ मिलकर कार्य कर रही है ।
आज की नारी घर की चार दीवारी में कैद नहीं है ना ही संस्कार परम्पराओं में लिपटी है वह आदर्शो की कठपुतली है । नारी के लिये संघर्ष ही यथार्थ है । स्त्री और पुरूष समाज के दो प्रमुख स्तम्भ है । एक के बिना दूसरे का अस्तित्व अधूरा है । भारतीय समाज में स्त्री का महत्वपूर्ण स्थान रहा है । वास्तव में स्त्री के बिना समाज की कल्पना ही अधूरी है । यद्यपि नारी को भारतीय समाज एवं सृष्टि का प्रमुख आधार माना गया है किन्तु फिर भी समाज में नारी की स्थिति सदैव एक सी नहीं रही है । उनकी स्थिति में प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक अनेकानेक परिवर्तन हुए । विभिन्न कालों में भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा भिन्न-भिन्न रही है, परन्तु फिर भी आधुनिक समय में महिलाओं ने अपनी सफलता का डंका चारों दिशा में बाजाया है अर्थात् विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं ने अपनी स्थिति को सुदृढ़ करके अपने वर्चस्व को बढ़ाया है ।
‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तन्त्र देवताः’’ अर्थात् जहां नारी की पूजा होती है वहां पर देवता निवास (रमण) करते है । प्राचीन काल में भारत के ऋषि मुनियों ने नारी के महत्व को भली-भाँति समझा था । उस समय नारी का सर्वागणि विकास हुआ था । सीता जैसी साहबी, सवित्री जैसी पवित्रता, गार्गी और भैतेयी जैसी विदृशियों ने इस देश की भूमि को अलंकृत किया था ।
सामाजिक परिवर्तन एवं विकास में महिलाओं का योगदान सदा ही रहा है । जिस प्रकार आवश्यकता महसूस होती है उसे पाने के लिये प्रयास किये जाते है और यह प्रयास अविष्कार हो जाता है । और इस अविष्कार और खोज से सामाजिक विकास में उन्नति होती है । सामाजिक परिवर्तन एवं विकास में महिलाओं की सहभागिता पर प्रश्न चिन्ह सा लगता है परन्तु वास्तविकता यह है कि सामाजिक परिवर्तन में महिलाओं का योगदान प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों रूप से सहभागिता नैष्ठिक रही है । ‘‘नारी बड़ा एक व्यक्ति ही नही एक शक्ति भी है । उसका नारीत्व माँ की ममता के रूप में छलकता है । ऐसी नारी का सम्मान एवं गौरव संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत संरक्षित है ।’’
सामाजिक परिवर्तन में महिलाओं की सहभागिता सबसे ज्यादा होती है । इसलिए इन्हें महिला सशक्तिकरण के दायरे में रखा गया है । यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें महिलाओं को पुरूषों के समक्ष लाकर उनके प्रति होने वाले सभी प्रकार के भेद-भाव को समाप्त करके उन्हें स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के प्रयासों का पुनर्वलन किया जाता है, ताकि वे अपनी परम्परागत दब्बू प्रकृति के आवरण से बाहर किल कर आत्म निर्भर एवं स्वालम्बी बन सके । यह प्रयास उनकी योग्यता का चतुर्दिक सशक्तिकरण करता है ताकि उनकी अभिरूची स्पष्ट हो सकें । संसाधनों का समुचित उपयोग किया जा सके और परिवार एवं समुदाय में सहभागी संबंधों का पूरा लाभ उठाया जा सके । दूसरे शब्दों में महिलाओं की सहभागिता होना अति आवश्यक होता है । समाज का विकास एवं उन्नति में सहायक होता है ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश में विकास एवं सामाजिक परिवर्तन हुआ । परिवर्तन प्रकृति का नियम है समाज में परिवर्तन की प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप विकास के साथ महिलाओं की स्थिति में भी अत्याधिक परिवर्तन आया भारतीय समाज में जहाँ महिलाएं, दासता का जीवन यापन करती थी, सामाजिक प्रतिबंधों से ग्रसित थी । लेकिन धीरे-धीरे सामाजिक बदलावों से पुरूषों की सोच में बदलाव आया और उन्होने महसूस किया कि जब तक समाज की महिलाएं उपेक्षित रहेगी समाज का विकास हो ही नही सकता । अतः महिलाओं की सहभागिता को आवश्यक मानकर विकास कार्यों में महत्व दिए जाने लगा ।
हमारे भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के पश्चात् से ही धीरे-धीरे महिलाओं की सामाजिक सहभागिता प्रारंभ हो चुकी थी । राजनीति में महिलाओं की सहभागिता समाज के एक विशिष्ट वर्ग उच्च और सम्रान्त वर्ग तक ही सीमित थी झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई डिण्डोरी की रानी अवंती बाई, रानी दुर्गावती के नेतृत्व की सफलता एवं सक्रियता के कारण ही सन् 1991 में संविधान में 73 वें व 74 वें संशोधनों द्वारा देशभर की जिला परिषदों में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत स्थान आरक्षित करने का प्रावधान किया गया जो महिलाओं की राजनैतिक भागीदारी की ओर एक सराहनीय कदम है मध्यप्रदेश के 2 ऐसे प्रान्त है जहां पंचायती राज में 50 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षण किया गया है । शिक्षा के प्रसार एवं संवैधानिक प्रावधानों के कारण आज माध्यम व उच्च परिवारों की स्त्रियाँ बाहर निकलकर अपने आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक कार्यो में संलग्न है सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण बात है कि महिलाओं के कार्योजित होने से पारिवारिक संरचना में हुए परिवर्तनों के कारण ही आज परिवार के नीतिगत निर्णयों में महिलाओं की सलाह ली जा रही है ।
स्वतंत्र भारत में महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन के लिये भारतीय समाज के परम्परागत मूल्य, विश्वास एवं आदर्श प्रतिमानों को कानून द्वारा परिवर्तित कर संस्थात्मक ढ़ांचे में सुदृढ़ करने के प्रयास प्रारंभ किये गये है । परिणाम स्वरूप गुणात्मक के प्रयासों के फलस्वरूप ही महिलाओं को तलाक, विधवा, पुर्नविवाह पारिवारिक सम्पŸिा मं लड़कियों को बराबर का हक व दहेज कानून अपराध माना गया । महिलाओं की स्थिति में हुए परिवर्तन का ही परिणाम है कि आज की नारी संगठित होकर पुरूष के पोषण, अमानवीय व्यवहार, बलातकार का विरोध कर अपने अधिकारों के प्रति संवेदनशील है, नगर ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी महिलाओं द्वारा पति को परमेश्वर मानने की परम्परागत धारणा में परिवर्तन प्रारंभ हो गया है । महिलाओं की स्थिति में हो रहे कर्मकाण्डीय मूल्यों विश्वासों में परिवर्तन विकसित होने के फलस्वरूप जहाँ महिला शक्ति सशक्त और आत्मनिर्भर हो रही है वही भारतीय समाज परम्परागत और रूढ़ियों के जाल से मुक्त होकर एक आधुनिक और विकसित समाज की ओर अग्रसर हो रहा है ।
आज बड़े शहरों में महिलाओं की कार्यशैली एवं सहभागिता देखकर यह महसूस किया जाता है कि वास्तव में महिलाओं कंधा से कंधा मिलाने की क्षमता है और यह क्षमता मात्रा कंधे से कंधा मिलाने तक सीमित नहीं है । पुरूषों की तुलना में महिलाओं में कार्य करने की क्षमता अधिक रहती है उनकी सोच में भी क्रांतिकारी परिवर्तन की भावना पनपती है । चूंकि महिलायें धर्म भीरू होती है । इसलिए अपने दायित्व का निर्वहन ईमानदारी से करना चाहती है । ये सभी कारणों से ही महिला में सामाजिक सोच अलग झलकता है अब तो भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए महिलाओं को इसके निवारण के लिए सहभागिता में लाना चाहिए क्योंकि महिला ही, धर्म संस्कृतिक की रक्षा के लिए समय-समय पर काम आयी है चूंकि पहले ही विवरण दिया गया है कि महिला धर्म भीरू होती है इसलिए अच्छे एवं बुरे कार्य को सोच समझने की क्षमता उसमें पुरूष की तुलना में अच्छी होती है ।
वर्तमान समय में भारतीय समाज के अंतर्गत होने वाले कार्यक्रमों में आज महिलाओं की सहभागिता पुरूषों के समान दिखलाई पड़ती है । आर्थिक सामाजिक, राजनैतिक व व्यावसायिक और प्रशासनिक आदि कई क्षेत्रों में महिलाएँ अपनी भागीदारी निभा रही है । आज पंचायतों, विधानसभा, लोकसभा आदि में इनका स्थान निश्चित रहता हे । विश्व के प्रायः सभी समाजों में पुरूषों की प्रधानता व महिलाओं के शोषण और उत्पीड़न के विरूद्ध समय-समय पर महिलाओं ने आवाज उठाई और अपनी स्वतंत्रता, समानता, मताधिकार, शिक्षा, उŸाराधिकार के लिए समाज में परिवर्तन हुआ जिससे ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में विकास संभव हो सका ।
सामाजिक परिप्रेक्ष्य में महिलाओं की सहभागिता अतुल्यनीय है । स्त्रियों की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है स्त्री शिक्षा प्रसार से व औद्योगिक संस्थाओं और विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी करने लगी है । जिससे आर्थिक दृष्टि से वे आत्मनिर्भर होती जा रही है । डाॅ. पाणिक्कर के अनुसार महिलाओं द्वारा हिन्दू जीवन के संदर्भों का पूर्नपरीक्षण आज हिन्दू समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती है । परिवर्तित सामाजिक आवश्यकताओं के प्रति जागरूकता, शिक्षा से उत्पन्न महत्वकांशा ने स्थिति को ऊंचा उठाने में योगदान दिया है । परिवार में सामाजीकरण की विभिन्न अवस्थाओं में महिला सहभागिता प्रमुख रही है ।
References
महिला विकास और सशक्तिकरण - प्रज्ञा शर्मा
महिला सशक्तिकरण और दशा और दिशा - एस. अखिलेश
सामाजिक नियंत्रण एवं सामाजिक परिवर्तन - डा. एम.एम. लवानिया
परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र - डाॅ. जी.आर. यादव
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