अनुसूचित जाति और छुआछात का व्यवहार

Authors

  • घनश्याम गेडाम शोधार्थी (समाजशास्त्र) समाजशास्त्र एवं समाजकार्य विभाग रादुविवि

Keywords:

Abstract

शोषण, अन्याय और ‘‘प्रजातीय भेदभाव सभी जगह है, लेकिन भारत जैसा उदाहरण कहीं भी नहीं है। जहाँ व्यक्ति दलित (अस्पृश्य) रूप से जन्म लेता हो और जीवन पर्यन्त दलित और अपवित्र रहता है। सामाजिक भेदभाव का यह अनोखा ही नमूना है, जिसमें समान रूधिर और हाड मांस वाले मनुष्य को मात्र देखने और छूने से ही दूसरा अपवित्रत हो जाता है। उसे पवित्र होने के लिए गंगाजल, यहाँ तक कि गोमूत्र की आवश्यकता पड़ती है।’’1 भारत में जानबूझकर ऐसा जातीय ढाँचा निर्मित किया गया जिसमें कि व्यक्ति नहीं, सम्पूर्ण समूह और जाति पर अनेक वर्जनायें लादकर उन्हें दलित बनाया गया। आजादी के बाद यद्यपि इन वर्जनाओं को दूर करने के अनेक प्रयत्न हुए हैं, किन्तु लोगों के मन मस्तिष्क पर परंपरावादी सामाजिक मान्यताओं, निषेधों का प्रभाव इतना अधिक है कि इसे विगत वर्षों में समाप्त नहीं किया जा सका है।2 आलेख में अस्पृश्यता संबंधी प्रतिमानों को दर्शाया गया है, जो वर्तमान समय में भी व्यवहार में प्रचलन में है।

References

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2017-07-31

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