प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों का पर्यावरणीय ज्ञान, अभिवृत्ति एवं अभ्यास का अध्ययन।

Authors

  • डा. नरेश कुमार सोनकर व्याख्याता शासकीय शिक्षा महाविद्यालय, जबलपुर (म.प्र.)

Keywords:

प्रकृति, प्रदूष.ा, पर्यावर.ा।

Abstract

वर्तमान समय में भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व किसी एक समस्या को लेकर भयभीत है, तो वह है पर्यावरण की समस्या। प्रकृति और मनुष्य एक दूसरे के पूरक हैं एक के अभाव में दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती। मानव जीवन का कोई भी पक्ष पर्यावरण से पृथक करके नहीं देखा जा सकता है। प्राचीनकाल में मानव की नित्य क्रिया, संस्कार, अनुष्ठान, व्रत, त्यौहार, क्रियाकर्म, तथा पूजा पद्धति की क्रिया आदि सभी में पर्यावरण समाया हुआ है। ब्रह्माण्ड एवं पर्यावरण अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली है। ब्रह्माण्ड के तत्व पर्यावरण को प्रभावित करते हैं उसी प्रकार पर्यावरणीय क्रियायें ब्रह्माण्ड को प्रभावित करती हैं। यह क्रिया सदैव अनवरत रूप से चलती रहती है। संसार में सृष्टि के उदय के साथ ही संतुलन का भी उदय हुआ है। प्रकृति, पुरूष और पशु पक्षी ये सभी सृष्टि के मूर्त रूप हैं। तीनों में जब तक संतुलन है तब तक जीवन है, विकास है। जब इनमें असंतुलन हो जायेगा तो विनाश शुरू हो जायेगा।

References

अग्रवाल एस.के. एवं कीमती लाल- ”पर्यावरण अध्ययन।“ प्रगति प्रकाशन- मेरठ। द्वितीय- संस्करण 1990 2. दीक्षित डाॅ. प्रभा- ”पर्यावरण शिक्षा।“ विनोद पुस्तक मंदिर आगरा नवीनतम संस्करण। 4. गोयल डाॅ.एम.के.- ”पर्यावरण शिक्षा।“ विनोद पुस्तक मंदिर आगरा प्रथम संस्करण 1997

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Published

2014-06-30

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Articles