एक अध्ययन - सांख्यदर्शन के प्रमुख आचार्य एवं उनका संक्षिप्त परिचय
Keywords:
सांख्यकारिका, योग भाष्य, व्यास भाष्य, योग दर्‛ान, गीताAbstract
सांख्यदर्शन के प्रवर्तक महर्षि कपिल माने जाते हैं। परंपरानुसार भी इस दर्शन के प्रथम आचार्य एवं उपदेशक के रूप में इन्हीं का स्मरण किया जाता है। प्राचीन संस्कृत साहित्य में महर्षि कपिल का अनेकशः उल्लेख हुआ हैं प्रथम उल्लेख श्वेताश्वतर उपनिषद् का है। सांख्य दर्‛ान में केवल दो तत्वों का विवेचन है एक चेतन ;पुरूष,आत्माद्ध दूसरा अचेतन ;प्रकृतिद्ध दोनो तत्वों में भेद ज्ञान का निरूपण करने वाले ‛ाास्त्र का नाम सांख्य रखा गया है । इसमे संख्याओं का ज्ञान होने से इसका नाम सांख्य पडा । कपिल मुनि द्वारा दो ग्रन्थ - सांख्य सू़त्र तथा सांख्यकारिका प्रतिपादित है । इसमे पुरूष, प्रकृति और प्रकृति के 23 विकार मिलाकर कृल 25 तत्वो का वर्णन किया गया है।गीता मे श्री कृष्ण जी ने सांख्य और योग को एक ही माना है तथा कपिल मुनि के प्र‛िाष्य पंच‛िाख आरै पं0 वाचस्पति मिश्र के अनुसार सांख्य को से‛वर सांख्य भी कहाॅ गया हैं । महर्षि कपिल के ‛िाष्य आसुरि तथा आसुरि के ‛िाष्य पंच‛िाख हुए और ई‛वर कृष्ण महर्षि कपिल प्रवर्तित एवं आचार्य आसुरि तथा पंचशिख संवर्द्धित सांख्यदर्शन की विचारधारा को विच्छेदरहित रूप से प्रवाहित करने वाले यही ईश्वरकृष्ण हैं। आचार्य ईश्वरकृष्ण के अनन्तर वृत्तिकारों, टीकाकारों का समय आता है। इनमें आचार्य माठर, युक्तिदीपिकार, आचार्य गौडपाद, जयमंगलाकार, पं0 वाचस्पति मिश्र इत्यादि। सांख्यदर्शन की दूसरी परम्परा में आचार्य अनिरुग्द्ध, विज्ञानभिक्षु, महादेव वेदान्ती इत्यादि अति प्रसिद्ध आचार्य हैं। इनमें द्वादशकाननपंचानन एवं सर्वतन्त्र स्वतन्त्र रूप से विश्रुत पं0 वाचस्पति मिश्र का दर्शन के क्षेत्र में सर्वाधिक योगदान है। वाचस्पति मिश्र की टीकाओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैः- न्यायवर्तिकतात्पर्यटीका, न्यायसूची निबन्ध, सांख्यतत्वकौमुदी, तत्ववैशारदी, न्यायकाणिका, ब्रह्मतत्त्वसमीक्षा तत्त्वबिन्दु, भामती पं0 वाचस्पति मिश्र की समस्त कृतियों में ‘भामती’ का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। प्राचीन-सांख्याचार्य-आचार्य पौरिक, पंचाधिकरण, पतंजलि रहे । सांख्य दर्‛ान के इन्हीं प्रमुख आचार्यो का सक्षिप्त विवेचन इस लेख में किया गया है ।References
अश्वत्थः सर्ववृ़क्षाशां देवर्षीणां च नारदः। गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनि।(गीता 10/26) 2. विधासदायवंत च आदित्यस्थं समाहितम्। (अ0 339/68,69)। 3. कपिलस्तत्वसंख्याता भगवानात्ममायया। (भाग0 3/25/1)। 4. ‘‘सरस्वती दृषद्वव्योर्देवनद्योर्यदन्तरम्’’ तं देवनिर्मितं देशं ब्रह्यावर्त बिदुर्बुधाः।। (मनु02/17) 5. प्रजाः सृजेति भगवान कर्दमों ब्रह्मणोदितः सरस्वत्यां तपस्तेषे सहस्त्रावां समादश।।(द्रष्टव्य भागवत 3/21/6) 6. एवं तमनुभाष्याथ भगवान प्रव्यगज्ञजः जगम बिन्दुसरसः सरखत्या परिश्रितात।।(द्रष्टव्य भगवत 3/21/33) 10. ‘‘विविक्ते छक्परिणतौ बुद्धौ भोगोस्य कथ्यते। प्रतिबिम्बोदयःस्वच्छे (स्वच्छो?) यथा चन्द्रमसोऽम्भसि।।’’ 11. बुद्धिहिं पुरुषसन्निधानात् तच्छायातयत्तया तद्रू पेव सर्व विषयोपभोगंपुरुषस्य साधयति। सुखदुःखनुभवो भोगः, सद् बुद्धौ, बुद्धिश्च पुरुषपरुपेवेति सा पुरुषमुपभोजयति। 12. सर्वं प्रत्युपभोगं यस्मात् पुरुषस्य साधयति बुद्धिः। सैव च विशिनष्टि पुनः प्रधानपुरुषात्तरं सूक्ष्मम्।। (सांख्यकारिका/3) 13. पराशरगोत्रस्य वृद्धस्य सुमहात्मनः। भिक्षों पंचशिखस्याहं शिष्यः परमसम्मतः।। (द्रष्टव्य, शक्तिपर्व
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