मधुसूदन सरस्वती के काव्यशास्त्रीय सिद्धान्तों की समीक्षा (भगवद्भक्तिरसायन के संदर्भ में)

Authors

  • डा. ज्योत्सना निगम डा. ज्योत्सना निगम बरकतुल्लाह विश्विद्यालय भोपाल

Abstract

मधुसूदन सरस्वती की प्रसिद्धि मुख्य रूप से उनके ग्रन्थ अद्वैतसिद्धि के कारण है। यही कारण है कि उनका नाम लेते ही शंकर शिष्य एवं अद्वैत वेदान्ती के रूप में ही उनकी छवि मस्तिष्क में उभरती है। विद्वानों का चिन्तन एवं ग्रंथों का प्रणयन भी सामान्यतया अद्वैतसिद्धि, सिद्धान्तबिन्दु, वेदान्तकल्पलतिका पर ही केन्द्रित रहा है तथा मधुसूदन सरस्वती कृत भगवद्भक्तिरसायन नामक ग्रंथ उपेक्षित रहा। जबकि मधुसूदन सरस्वती कृत भगवद्भक्तिरसायन नामक ग्रंथ अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। सर्वप्रथम मधुसूदन ने भक्ति की स्थापना अद्वैत की मर्यादा में रहकर ही  की है। दूसरे इस ग्रंथ में मधुसूदन भक्ति को स्वीकार ही नहीं करते बल्कि काव्यशास्त्रीय सिद्धान्तों के द्वारा वे उसकी रसरूपता एवं सर्वश्रेष्ठ रस की स्थापना करते है। तीसरे इस ग्रंथ के भक्ति परक दार्शनिक एवं काव्यशास्त्रीय दोनों ही सिद्धान्तों का मूल्यांकन रचनाकार एवं साहित्य के दृष्टिकोण से करना भी आवश्यक है और चैथा- मधुसूदन की इस नई दृष्टि का तत्कालीन साहित्य व समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ? 

References

संदर्भ ग्रन्थ -

नाट्य शास्त्र 6/82 अभिनव भारती-पृष्ट - 340

भगवद्भक्तिरसायन ,जनार्दन शास्त्री पाण्डेय ,गिरिजेश कुमार पाण्डेय ,पञ्चगङ्गा ,वाराणसी ,द्वितीय संस्करण पृष्ठ- 27

वही , भगवद्भक्तिरसायन-पृष्ठ – 28

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वही ,भगवद्भक्तिरसायन - पृष्ठ - 24

रस गंगाधर प्रथम आननम् पृष्ठ- 184-1/-9

वही, भगवद्भक्तिरसायन 1/-9

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वही ,भगवदभक्तिरसायन-1/10

वही,भगवदभक्तिरसायन-2/75

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Published

2014-08-31

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Section

Articles