चन्द्रकान्ता के उपन्यासों में सामाजिक कथ्य-चेतना

Authors

  • डाॅ. राजेेश कुु धुर्वे

Abstract

समकालीन कथा-लेखिका चन्द्रकान्ता के उपन्यासों में सामाजिक कथ्य-चेतना अपनी
संपूर्णता के साथ पाठकों के सामने आती है। वे अपने उपन्यासों में समय का बोध कराते हुए
परंपराओं से बंधे होकर भी आने वाले समय की तस्वीर सामने रखते हैं। वैसे तो उनके उपन्यासों
में राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक आदि सभी पक्षों को प्रस्तुत किया गया है, किन्तु इन सब पर
सामाजिक मान्यताएँ अधिक प्रभावी हैं। उनकी कथ्य-चेतना में संस्कृति का निर्माण पारस्परिक
सम्बंधों पर आधारित है। वे अपने कथ्य में भावनात्मक आधार पर मानती हैं कि परिवार ही
सामाजिक रीति-रिवाजों का नियमन करता है। समय का बदलाव भी डनका कथ्य-चतना के
केन्द्र में होता है।

References

हिन्दी साहित्य कोश (भाग-1)-पृ. 121.

कुछ विचार -पृ. 47.

समाजशास्त्र के सिद्धान्त-पृ. 285.

बाकी सब खैरियत है - पृ. 17.

अपने अपने कोणार्क-पृ. 129.

ऐलान गली जिन्दा है-पृ. 166.

मेरे भोज-पत्र-पृ.59

अन्तिम साक्ष्य -पृ. 38.

यहां वितस्ता बहती है -पृ. 48.

ऐलान गली जिन्दा है -पृ. 177.

वही -पृ. 144.

यहाँ वितस्ता बहती है - पृ. 71.

वही -पृ. 104

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Published

2021-02-28