पूर्व-शालेय बालक एवं बालिकाओं की बाल-संगोपन गतिविधियों में पिता की सन्निहिति पर परिवार की प्रकृति एवं परिवेश के प्रभाव का अध्ययन

Authors

  • सिद्धि पाण्डे डॉ. श्रीमती गीता शुक्ला

Abstract

आधुनिकीकरण के परिणामस्वरूप समाज की प्रथम इकाई परिवार में महत्वपूर्ण एवं सार्वभौमिक परिवर्तन हुए हैं। शिक्षा के उन्नयन एवं रोजगार प्राप्ति के अवसरों के परिणामस्वरूप परिवारों का विघटन हुआ है। औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रिया ने संयुक्त परिवार को सर्वाधिक प्रभावित किया है। विज्ञान एवं तकनीक की प्रगति के फलस्वरूप प्रतियोगिता गला-काट हो गई है। इन सबके फलस्वरूप मँहगाई बढ़ गई है जिसके कारण अब पुरुषों के साथ में महिलाओं को भी कार्य क्षेत्र में उतरना पड़ रहा है जिसके कारण रोजगार के नये अवसर प्राप्त करने एवं पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के परिणामस्वरूप व्यक्तिवाद की भावना के कारण लोग संयुक्त परिवार को छोड़कर बाहर जाने लगे हैं और संयुक्त परिवार की व्यवस्था भंग होती जा रही है तथा एकल परिवारों की संख्या बढ़ने लगी है। सामाजिक व्यवस्था में आए परिवर्तनों ने परिवार में सदस्यों की भूमिका को भी प्रभावित किया है। संयुक्त परिवार में जहाँ दादा-दादी, चाचा-चाची, ताई-ताऊ, आदि बाल-संगोपन गतिविधियों में सहयोग एवं मार्गदर्शन करते थे, वहीं अब एकल परिवारों में इस प्रकार के सहयोग एवं मार्गदर्शन का अभाव हो गया है। परिणामस्वरूप इस कार्य का सारा उत्तरदायित्व माता पर आ गया है। परिवार को आर्थिक सम्बल प्रदान करने  के लिए माता का व्यवसाय में लगे होने के कारण शिशु पर पर्याप्त ध्यान देने के लिए पिता का सहयोग करना आवश्यक हो गया है। इस कारण परिवार में संतुलन बनाने के लिये पिताओं ने अपनी सन्निहिति को बाल-संगोपन गतिविधियों में बढ़ाया है। एकल एवं संयुक्त परिवारों के संदर्भ में परिवारों की भूमिका भिन्न हो जाती है क्योंकि इन परिवारों की प्रकृति के कारण प्रत्येक सदस्य की भूमिका भिन्न हो जाती है, यह भी महत्वपूर्ण है कि विकासात्मक दृष्टिकोण से पिता एवं बच्चे की भूमिका विकास के विभिन्न परिप्रेक्ष्य में देखी जा सकती है, इनमें संज्ञानात्मक, सामाजिक, संवेगात्मक क्षमताएँ भिन्न हो जाती हैं एवं इसे इस दृष्टिकोण से भी देखा जाना चाहिए। बच्चे का लालन-पालन एक ऐसा कार्य है, जिससे सभी पारिवारिक सदस्यों की अलग-अलग भूमिका रहती है, परंतु उसे समग्र रूप से देखा जाना आवश्यक है, जिसमें अलग-अलग सदस्यों की भूमिका में टकराव न हो जिसका बच्चे के संतुलित विकास पर प्रभाव न पड़े, इसमें परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। एकल एवं संयुक्त परिवार के साथ-साथ शहरी एवं ग्रामीण परिवेश भी बच्चोें के लालन-पालन पर अपना विशिष्ट प्रभाव डालते हैं, अतः शोधकर्ता ने यह देखने का प्रयास किया है कि क्या परिवार की प्रकृति के साथ परिवेश की प्रकृति का भी प्रभाव बच्चे के लालन-पालन में पिता की सन्निहिति को प्रभावित करता है जिससे किसी भी परिस्थिति में विपरीत प्रभाव बच्चे के विकास पर न बने।

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2021-05-30

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Articles