बंुदेलखण्ड में जैन धर्म की पुरातात्विक सम्पदा

Authors

  • डाॅ. तृप्ति सिंघई मानव शास्त्र विभाग डाॅ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर म.प्र.

Keywords:

धार्मिक, उद्भव, बैरिस्टर, धर्मावलंबियों, आंकड़ों।

Abstract

भारत में सभ्यता के आदिकाल से धार्मिक भावनाएँ किसी न किसी रूप में विद्यमान रही हैं धार्मिक भावनाओं को मूर्त रूप प्रदान करने के लिये मंदिरों और मूर्तियों का निर्माण हुआ। ये मंदिर केवल पूजा का स्थान और मूर्तियां केवल पूज्यनीय वस्तु ही नहीं हैं, ये ऐतिहासिक अन्वेषण में सहयोगी भी हैं। कदाचित इसी कारण मंदिरों और मूर्तियों को ”संस्कृति के अवशेष के रूप में स्वीकार किया जाता है।“
जैन धर्म के उद्भव के विषय में जो भी शास्त्रीय उल्लेख है वे अत्यंत कल्पनीय हैं। बैरिस्टर जगनमन्दर लाल जैन के अपनी पुस्तक ”आऊट लाइन्स आॅफ जैनिज्म“ में लिखा है कि जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव जी हैं जिनका जन्म 84 लाख वर्ष पूर्व हुआ था यदि इस आधार को सत्य स्वीकार किया जाये तो जैन धर्म के 21 वें तीर्थंकर नेमिनाथ जी का जन्म काल 10,000 वर्ष पूर्व माना जा सकता है। आधुनिक विज्ञान एवं पृथ्वी के विषय के वैज्ञानिक अध्येता इसे स्वीकार नहीं कर सकते और न ही बिना किसी प्रमाण के आधुनिक विद्यार्थी इसे स्वीकार करेंगे। किंतु हिन्दू धर्मावलंबियों के लिये यह आश्चर्यजनक नहीं है क्योंकि वे विश्व का जन्म 51 ”कल्प“ पहले मानते हैं जबकि एक कल्प में 4 अरब 32 करोड़ वर्ष हैं। यहां पर उक्त आंकड़ों को देने की आवश्यकता केवल इसलिये हो रही है क्योंकि जैन धर्मावलंबी ”जैन धर्म“ को विश्व का प्राचीनतम धर्म मानते हैं और उनका यह चिन्तन इसलिये भी उचित प्रतीत होता है क्योंकि वेदों में जैन धर्म के विषय में उल्लेख मिलता है। किंतु वेदों को लिखने का काल इतना अधिक वृहद है कि उसके मध्य में कब जैन धर्म का उदय हुआ यह कहना संभव नहीं है।
ऋषभदेव जी (जिन्हें भगवान आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है) राजा ”नाभि“ के पुत्र थे। सांसरिक जीवन से विरक्त होने के पश्चात् ये जंगलों में जाकर तपस्या करने लगे। वहंा उन्हें तपस्या के दौरान ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्होंने अपने भक्तों एवं अनुयायियों को शिक्षित किया। ऋषभदेव जी के पश्चात् कालान्तर में 23 अन्य तीर्थंकर हुये। जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ हैं जिनका जन्म महावीर स्वामी के जन्म से 250 वर्ष पूर्व माना जाता है। जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी हैं जिन्होंने जैन धर्म को संशोधित रूप में इस सीमा तक प्रचारित किया कि उन्हें ही जैन धर्म का प्रवर्तक माना जाने लगा।

References

संदर्भ

जैन भागचंद (1974): देवगढ़ की जैन कला (एक सांस्कृतिक अध्ययन)

जैन बलभद्र (1976): भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (तृतीय भाग) मध्यप्रदेश

शर्मा श्रीनाथ एवं गौतम भूपेंद्र (1991): भारतीय समाज

Jain J.L. : " Outlines of Jainism" Quoted from J.P.Suda's "Religion of India"

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Published

2014-10-31