राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का विकास'

Authors

  • Yogita Rawte (Sr Research Consultant,Hindi Literature,RDVV,Jabalpur

Abstract

किसी राष्ट्र की भाषा उस राष्ट्र की सबसे बड़ी पहचान होती है। राष्ट्र में भूमिजन और जन-संस्कृति की योजक इकार्इयाँ सनिनहित होती है, तथा संस्कृति में भाषा का समावेश रहता है। अत: जिन मूलभूत तत्वों के कारण कोर्इ देश राष्ट्र की संज्ञा पाता है, उनमें राष्ट्र भाषा प्रमुख है। राष्ट्रभाषा ऐसी भाषा है, जो राष्ट्र में योजक सूत्र का कार्य करती है। वह राष्ट्रीय संविधान राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत आदि के समान राष्ट्रीय असिमता की पहचान होती है। राष्ट्रभाषा के समान राजभाषा भी महत्वपूर्ण होती है। भारत विविध भाषा-भाषी देश है, और यहाँ के भाषा-भाषी अपनी भाषा को केवल अभिव्यकित का साधन नहीं मानते अपितु उसे सत्ता और संस्कृति का अंग मानते है। समस्त भारतीय भाषाओं के परिपे्रक्ष्य में देखा जाय तो हिन्दी ही ऐसी भाषा, जिसमें राष्ट्रीय एकता के प्रबल सूत्र है। हिन्दी के राष्ट्रभाषा स्वरूप को व्यक्त करने के लिये हमें इस तथ्य पर ध्यान केंदि्रत करना होगा कि राष्ट्र-भाषा का प्रश्न सदैव जातीय गौरव की अभिव्यकित का वाहक होता है। हिन्दी की असिमता पराधीनता के परिवेश में जिन परिसिथतियों में अपने असितत्व को बचा पार्इ है, उन परिसिथतियों में किसी अन्य देश की भाषा के लिये शायद यह संभव न होता।

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Published

2014-01-31