भारत में गरीबी मापन कितना तर्क संगत।
Keywords:
असमनताओंए जनसंख्या ए गतिविधियों ए न्यूनतम ए आवष्यकताओंAbstract
उन सभी अल्पविकसित देषों में जहां प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है, आय की असमनताओं ने कई बुराईयों को जन्म दिया है जिनमें से सबसे गंभीर बुराई गरीबी है। भारत में योजना अवधि के दौरान तमाम आर्थिक विकास के बावजूद 2004-05 में 41.6 प्रतिषत जनसंख्या विष्व बैंक द्वारा परिभाषित 1.25 डालर प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन कमी गरीबी रेखा से नीचे थी। जनसंख्या का यह बड़ा हिस्सा आज भी तमाम अभावों की जिन्दगी जी रहा है। गरीबी मूलतः वंचन (कमचतपअंजपवद) से संबंधित है। गरीबी से आषय जीवन की कुछ निर्दिष्ट आष्यकताओं की पूर्ति से वंचित रहने (कमचतपअंजपवद तिवउ दमबमेेंतपमे व िसपमि) से है। एक व्यक्ति या व्यक्ति समूह गरीबी है क्योंकि वह कुछ निर्दिष्ट आवष्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रहा है, यदि वह जीवन निर्वाह की आवष्यकताओं-भोजन तथा कपड़ा की पूर्ति नहीं कर पा रहा है तो वह बहुत गरीब है। गरीबी की धारणा को हम दो जरह से देखते है- (क) परम्परागत या आधारभूत आवष्यकता दृष्टिकोण तथा (ख) बहु आयामीय दृष्टिकोण (डनसजपकपउमदेपवदंस ंचचतवंबी)/बहु आयामीय दृष्टिकोण में हम गरीबी निर्धारित करने वाले अधिक चरों को लेते हैं। जैसा कि तेन्दुलकर समिति ने कहा है गरीबी की रेखा की अवधारणा मूल मानवीय आवष्यकताओं को पूरा कर पाने की असमर्थता से जुड़ी है। ये मूल मानवीय आवष्यकताएँ हैं- पर्याप्त पौष्टिक आहार प्राप्त करना, पहनने के लिए उपयुक्त वस्त्र तथा रहने के लिए उपयुक्त स्थान होना अपरिहार्य (ंअवपकंइसम) बिमारियों से बचने की क्षमता, कुछ न्यूनतम स्तर तक षिक्षित होना तथा सामाजिक पारस्परिक क्रिया (ैवबपंस पदजमतंबजपवद) के लिए एवं आर्थिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए गत्यात्मकता (डवइपसपजल) परन्तु इस ‘बहु-आयामी’ संकल्प को आधार बना कर गरीबी की रेखा को एक न्यूनतम आय स्तर के रूप में परिभाषित करना संभव नहीं है क्योंकि इस संकल्पना में कुछ ऐसी बातें शामिल की गई है जिन्हें मापा नही जा सकता। इसलिए गरीबी को परिभाषित करते समय केवल भौतिक आयामों को ही शामिल किया जाता है और इस संबंध में भी केवल न्यूनतम उपभोग आवष्यकताओं पर ही विचार किया जाता है दूसरे शब्दों में गरीबी रेखा को एक ऐसे न्यूनतम उपभोग स्तर के रूप में परिभाषित किया जाता है जो जीवन का एक निम्नतम स्तर प्राप्त करने के लिए व मूल मानव आवष्यकताओं को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति या परिवार को उपलब्ध होना चाहिए इसे भारत में योजना आयोग ने ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन और शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन स्वीकार किया गया है। 1973-74 में ग्रमीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा को 49.63 रूपये प्रतिव्यक्ति प्रतिमास तथा शहरी क्षेत्रों में 56.64 रूपये प्रतिव्यक्ति प्रतिमास निर्धारित किया गया वर्ष 2009-10 में योजना आयोग ने गरीबी रेखा को ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 22.40 रूपये प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्रों के लिए 28.60 रूपये प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन लिया है। इसका अर्थ है ग्रामीण क्षेत्रों में 672.80 रूपये प्रतिव्यक्ति प्रतिमास तथा शहरी क्षेत्रों में 859.60 रूपये प्रतिव्यक्ति प्रतिमास।References
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