कवि 1970- लोकतन्त्र की एक कहानी

Authors

  • पंकज कुमार याद .. जवाहर नवोदय विद्यालय , बीकर दतिया , म. प्र.

Keywords:

..

Abstract

महान कवि धूमिल के द्रारा रचित यह कविता हमारे लोकतन्त्र में व्याप्त आम जनमानस की समस्याओ को रेखांकित करती हैं। ओर कविता के बीच जो नकलीपन व बनावटी पन है कवि उसकी ओर संकेत करता हैं । वह बताना चाहता हैं कि असली कविता आम आदमी के दुख दर्द से जुड़कर चलती हैं । किन्तु आज एसी कविताओ का अंबार हैं । जिनमे जीवन की मूल समस्याये न होकर मात्र कल्पना लोक की सैर कराती हैं ओर जीवन के कटु सत्यों से कोसो दूर रहती है | जबकि कविता के अभावग्रस्त घर में एक फटा कुर्ता हैं जो समाज में अभाव ओर बिषमताओ को व्यक्त करता हैं । कविता के घर से तात्यपर्य समाज की संवेदनाओ के घर से हैं । ओर संवेदना का घर हमेशा अभाव ग्रस्त होता हैं । अस्तु इस बात की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता, लेकिन कवि इन संवेदनाओ को महसूस करता हैं । ओर वह अपनी महरी को संबोधित करते हुए कहता हैं कि “चल अपना कम कर , फटी हुई बाह से देश की गरीबी का क्या मतलब” अभाव ग्रस्त जिंदगी के प्रति उपेक्षा , पूर्ण दूषित मनोभावों को ही व्याख्यायित करता है

References

..

Downloads

Published

2014-11-30