‘‘प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था (अथर्ववेद भाग एक, द्वितीयकाण्ड) के संदर्भ में

Authors

  • रंजना गौतम असिस्टेंट प्रोफेसर केशरवानी महाविघालय, जबलपुर ;मण् प्रण्द्ध

Keywords:

अथर्व, वेद, मानव।

Abstract

‘अथर्ववेद’ मंे कालकर्म की दृष्टि से परिवर्ती रचना है। अनुभूति या अंतःकरण मंे जो सत्य ज्ञान आदि लक्षण वाला ब्रह्म है, जिससे समस्त जगत् विलीन हो जाता है। इस श्रेष्ठ परमात्मा को प्रकाशवान ज्ञानवान या सूर्य ने देखा। उसी ब्रह्म का दोहन करके प्रकृति ने नाम रूप वाले भौथ्तक जगत को उत्पन्न किया। आत्मज्ञान मानव सदैव उस परब्रह्म की स्तुति करते हैं। जो मनुष्य उसे ज्ञात कर लेता है वह उस परमपिता (परम ब्रह्म) का हो जाता है।

References

निष्कर्ष .इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि मानव जीवन के लिये यह वेद पथप्रदर्शक एचं मार्गदर्शन देकर मनुष्य इसका अध्ययन करके अपना जीवन सार्थक बनता है। तथा धर्म-कर्म करने हेतु प्रेरित करता है। जिससे मानव का इस लोक के साथ ही साथ परलोक भी सुधरता है। तथा वेद अध्ययन एवं इसमें बताये हुए मार्ग पर चलने से जीवन में सफलता प्राप्त कर अपना जीवन सफल बनाता है।

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Published

2014-11-30