भारत में महिला शिक्षा एवं समाज में स्थान

Authors

  • डांॅ. आर. एस. मिश्रा विभागाध्यक्ष शिक्षा ए. के. एस. विश्वविद्यालय सतना

Keywords:

..

Abstract

‘‘देवी, माॅं, सहचरि, प्राण‘‘ भारतीय परंपरा में नारी के इतने रूप बनाये है, कविवर सुमित्रानंदन पंत ने। पुरूष प्रधान समाज ने स्त्री के उपर्युक्त रूपों के अनुरूप उसके लिए शिक्षा-दीक्षा की पर्याप्त व्यवस्था नही की, जिसके विषय में स्वामी विवेकानंद ने कहा था ‘‘स़्ित्रयों को सदैव असहायता और दूसरों पर बालवत् निर्भरता की शिक्षा प्रदान की गई है। यह शिक्षा देकर ही पुरूष युगों से नारी पर शासन करता आ रहा है। पुरूषों ने सहस्त्रों वर्षों से नारी को सरस्वती की वंदना से विमुख रखा है। स्त्री को ज्ञान के प्रकाश से बाहर निकालकर अज्ञानता से आवृत रखने में ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझी है। नारी तभी से विवशता की जंजीरों में जकड़ी हुई, अपने शिक्षित होने का इंतजार कर रही थी। वर्तमान समय में तत्कालीन समय की जंजीरों की कडि़या एक एक कर टूट रही है। अब नारी घर के अंदर धुट-धुट कर जिंदगी के दिन काटने वाली, अनपढ़, घूॅधट की गुडि़या नही रही है। आज वह शिक्षित महिला के रूप में बाह्य जगत में प्रवेश कर रही है तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरूषों के साथ बराबर का काम कर रही है।‘‘

References

पाण्डे़य डाॅ. रामशक्ल उदीयमान भारतीय समाज में शिक्षक पृष्ठ क्र. 704 विनोद पुस्तक मंथ आगरा - 2

पाठक सुमेधा स्त्री शिक्षा पृष्ठ क्रमांक 4, अग्रवाल पब्लिकेशन्स 28/115 आगरा -2

सिंह अमृता स्त्री शिक्षा पृष्ठ क्रमांक 3, अग्रवाल पब्लिकेशन्स आगरा - 2

जगदीश चंद्र प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत में शिक्षा पृष्ठ क्रमांक 98 अंश पब्लिशिंग हाउस पटपल गंज दिल्ली

अथर्व वेद सूक्त 6,2,3

Downloads

Published

2015-01-31