हिन्दी व्यंग्य विधा युग चेतना के संदर्भ में

Authors

  • डाॅ. सविता मसीह सहायक प्राध्यापक (हिन्दी) शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय सिवनी (म.प्र.)

Keywords:

विचारधारा, समकालीन, प्रेरित, परिवेश, विसंगतियों, लुकाठी।

Abstract

व्यंग्य साहित्य जगत की सशक्त विचारधारा का सृजन है। व्यंग्य समकालीन युग और परिस्थितियों से त्वरित होकर समय और कत्र्तव्य कर्म से प्रेरित होता है। जो अपने व्यापक परिवेश पर युग की समग्र विद्रूपताओं विसंगतियों अनस्थाओं तथा त्रुटियों पर कलम रूपी लुकाठी से प्रहार और सृजन के रास्ते अख्तियार करता है। व्यंग्य की युग चेतना का संबंध सामाजिक व्यवहार और वस्तुगत के प्रति रचनाकार की संवेदनशीलता और विचार पूर्ण प्र्रतिक्रिया से है। व्यंग्य देश और समाज में युग चेतना को निरंतर विश्लेषित करने की क्षमता रखता है।

References

हिन्दी साहित्य का इतिहास-डाॅ. नगेन्द्र, मयूर पेपर बैक्स, नोयडा।

डाॅ. हरिशंकर परसाई के व्यंग्यों में वर्ग चेतना-डाॅ. आभा भट्ट, जयभारती प्रकाशन इलाहबाद, 1994।

हिन्दी साहित्य का इतिहास-डाॅ. रामचन्द्र शुक्ल, वाराणसी 2029।

व्यंग्य का सौन्दर्यशास्त्र-मलय-साहित्य वाणी प्रकाशन इलाहबाद 1983।

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Published

2015-01-31