‘‘ग्रामीण जनों का शहरों की ओर पलायन एक सामाजिक समस्या’’ (रीवा जिले के विशेष संदर्भ में)

Authors

  • सुनीत कुमार तिवारी पी-एच0डी0शोधार्थी(समाज कार्य) महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, सतना (म0प्र0)

Keywords:

परिघटना, मनरेगा, सामाजिक जटिलता, ऋणग्रस्तता।

Abstract

बढ़ती आबादी के कारण पलायन की समस्या अत्यन्त उग्र रूप धारण कर चुकी है प्रथम जनगणना 1951 के समय में ग्रामीण आबादी 83 प्रतिशत एवं शहरी आबादी 17 प्रतिशत थी। वर्ष 2011 की जनगणना में यह गांवों में घटकर 68 प्रतिशत और शहरों में बढ़कर 32 प्रतिशत हो गई है। ग्रामीण जनों में पलायन का पहला और मौलिक कारण जनसंख्या में होने वाली तीव्र वृद्धि है। इसके अलावा गांवों में लगातार हो रहा कुटीर उद्योगों का पतन, भूमिहीन कृषक, ऋणग्रस्तता, सामाजिक, आर्थिक और प्राकृतिक कारण पलायन को विवश करते हैं। शहरों की चकाचैध, अधिक मजदूरी की आशा, शिक्षा और रोजगार की उम्मीद गांवों से शहरों की ओर ले जाती है। किन्तु इस तरह से पलायन सांस्कृतिक संघर्ष को तो जन्म देता ही है साथ ही नैतिक मूल्यों का भी अवमूल्यन होता है। रोजगार तथा बेहतर जीवन किसी भी काल में पलायन का मुख्य आकर्षण रहा है। गांवो में रोजगार के वैकल्पिक अवसरों का आभाव  है। उच्च शिक्षा प्राप्ति भी हमारे देश में पलायन का मुख्य कारण रहा है। पलायन का एक और बड़ा कारण है सामाजिक विषमता तथा शोषण। वजह कोई भी हो लेकिन सीमा से अधिक पलायन हमारे सामाजिक तथा राष्ट्रीय तानेबाने के लिये हानि कारक हो सकता है।

References

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Published

2015-05-01

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Articles