ओम प्रकाश वाल्मीकि कृत आत्मकथा ‘जूठन’ में अभिव्यक्त दलित चेतना

Authors

  • Anju Bala

Abstract

जूठन’ हिंदी दलित साहित्य के प्रसि( रचनाकार ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा है। ‘जूठन’ में दुख-दर्द, पीड़ा और कराह का एक संसार पफैला हुआ है। इन्हीं वेदनामयी टीसों के बीच ओमप्रकाश वाल्मीकि पलते, बढ़ते, जीते और साँस लेते हैं। इस आत्मकथा में एक तरपफ यातनादायी चीखें हैं तो दूसरी तरपफ इनसे होड़ लेने की चेतना और अद्भुत साहस भी व्याप्त है जो हर दलित और पीडि़त वर्ग को उठ खड़े होने की प्रेरणा देता है। इस आत्मकथा के माध्यम से पाठक वर्ग को यह ज्ञात होता है कि किस तरह वीभत्स उत्पीड़न के बीच एक दलित रचनाकार की चेतना का निर्माण एवं विकास होता है। दलित चेतना के प्रसार हेतु साहित्य के संदर्भ में दलित चेतना क्या है? इसके बारे में ओमप्रकाश वाल्मीकि लिखते हैं ‘‘दलित की व्यथा, दुःख, पीड़ा, शोषण का विवरण देना या बखान करना ही दलित चेतना नहीं है या दलित पीड़ा का भावुक और अश्रु विगलित वर्णन जो मौलिक चेतना से विहिन हो, मौलिक चेतना का सीध संबंध् दृष्टि से होता है जो दलितों की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक भूमिका की छवि के तिलिस्म को तोड़ती है। वह है दलित चेतना।’’

References

जूठन- ओमप्रकाश वाल्मीकि

जूठन: एक विमर्श: शिवबाबू मिश्र

आध्ुनिकता के आइने में दलित- संपादक: अभय कुमार दुबे

अंबेडकरवादी साहित्य का समाजशास्त्रा- डाॅ. तेज सिंह

दलित साहित्य का समाजशास्त्रा- ओम प्रकाश वाल्मीकि

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Published

2015-06-04

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Articles