शामशेर बहादुर सिंह की कविता: लोकाभिव्यंजना शक्ति और रागात्मकता

Authors

  • डाॅ. अशोक कुमार गेस्ट फैकल्टी (हिंदी) भाषा अध्ययनशाला, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर (म.प्र.)

Keywords:

प्रगतिशीलता, रागात्मकता, लोक अभिव्यंजना, उदात्तीकरण, रूमानीयत, जनवाद।

Abstract

शामशेर बहादुर सिंह की रचना-दृष्टि में कविता के मायने बहुत बड़े थे। वे कला के संघर्ष को समाज के संघर्ष से अलग करके नहीं देखते थे। कलाजगत् में बौद्धिकता के प्रपंच तथा राग-द्वेष की छीना-झपटी के बीच रहकर भी उन्होंने मनोजगत् की आंतरिक संरचनाओं का परिष्कार करने की कोशिश की । भावुकता और उल्लास को अभिव्यक्त करती अपनी कविताओं के माध्यम से प्रेमविह्वल होकर उन्होंने मानवीय अस्मिता और स्वाधीनता के उदात्त भावों की पगडंडी पर चलते हुए जनसाधारण की पोटली को बेहतरीन काव्य के रूप-स्वरूप एवं शिल्प-सौन्दर्य से भर दिया। दूसरे कवि इस काम को इतनी कुशलता से नहीं कर पाए। उन्होंने कला संस्कार को मजबूत बनाने वाली रागात्मकता को संभाला और सहेजा है। इस शोध पत्र के माध्यम से शमशेर बहादुर के कला दृष्टिकोण को जाना जा सकता है साथ ही कविता को जीवन से जोड़ने की रागात्मक शक्ति के विकास की उनकी कवि प्रखरता को समझा जा सकता है।

References

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Published

2015-06-30

Issue

Section

Articles