पारम्परिक ज्ञान-विज्ञान कबीर के संदर्भ में

Authors

  • डाॅ.अनीता चैबे (हिंदी विभाग) अ.बि.वा.हिं.वि.वि.भोपाल

Keywords:

ज्ञानाश्रयी, महानतम, सूक्ष्म, समन्वय, वेदाध्यन, सम्प्रदायों।

Abstract

कबीर ज्ञानाश्रयी काव्य धारा के सर्वोच्च कवि हैं। इस काव्य धारा की महानतम उपलब्धियों कबीर काव्य में अत्यंत सूक्ष्म और आकर्षक रूप में मिलती है। इसके अतिरिक्त उनका भक्त और सामाजिक व्यक्तित्व इतना विराट है जिसे दूसरे कवि छू नहीं पाते। कबीर का तत्व चिंतन बहुत गम्भीर है। पुस्तक ज्ञान के न रहते हुए भी उन्हें तात्कालीन दार्शनिक चिंतन प्रणालियाँ की सूक्ष्म जानकारी थी और उनमें गहरी स्वानुभूति भी थी। कबीर के काव्य का अपने समय के समाज से गहरा रिश्ता रहा है। जनसाधारण की भावनाओं और अनुभवों को ही कबीर ने अपने वाणी में अभिव्यक्ति दी है। इस दृष्टि से भी कबीर काव्य से सामाजिक पक्ष का अध्यन विशेष महत्व रखता है। धार्मिक ब्राह आडम्बर का खंडन, जातिप्रथा का विरोध, हिन्दु-मुस्लिम समन्वय आदि का संदेश कबीर ने वाणी के माध्यम से तरह-तरह के उपमानों द्वारा पूर्व में ही दे दिये थे। भक्ति आंदोलन के प्रारम्भिक दौर में ऐसे कवि हुए जिन्हें धार्मिक और सामाजिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उस समय समाज में निम्न समझी जानें वाली जातियों के लोंगों की स्थिति दयनीय थी। कबीर से पूर्व नाथ और सिद्ध सम्प्रदायों के संतों ने जातिप्रथा का विरोध किया था। संत भक्त धार्मिक समानता का संदेश लेकर आया। वेदाध्यन, कर्मकांड व्रत-उपवास और मंदिर प्रवेश को आवश्यक न मानने वाले संत कवियों ने सदियों से पददलित निम्न वर्गीय लोगों में आस्था और विश्वास का संचार किया। संत कवियों ने समाज में भक्ति द्वारा जन जागृति लाने का महान कार्य किया। इन कवियों नंे अपनें पुश्तैनी अनुभवों के आधार पर सामाजिक भेदभाव और धार्मिक अंधविश्वासों और सामाजिक रूढियों का दृढतापूर्वक विरोध किया।

References

“इन्द्रागाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली

“भारतीय साहित्य समाज और सांस्कृतिक” -“परिक्रमा - महादेवी वर्मा ”

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Published

2015-06-30

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Articles